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कोटि कोटि वन्दना रे...
यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ : सन्देश - वन्दन
लेखन के धनी
परम पूज्य व्याख्यान वाचस्पति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की कलम हमेशा किसी न किसी विषय पर अविरल चला करती थी कहते हैं कि जब वे कुछ लिखने बैठते थे तो फिर सिर ऊंचा करके नहीं देखते हैं कि कौन आ रहा है और कौन जा रहा है। जब किसी श्रावकगण को आचार्य श्री से मिलना होता था तो वे किसी भी साधु मुनिराज से संपर्क कर अपना संदेश भिजवाते थे, साधु मुनिराज श्री उनकी लेखन क्रिया में व्यवधान नहीं डाल सकते थे। संयोगवश आचार्य श्री लेखन क्रिया से कुछ समय के लिये लेखनी बन्द करते थे तब आगन्तुक श्रावक का संदेश देते थे।
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आचार्य श्री की लेखनी संघ यात्रा में भी चला करती थी। जब किसी छः रि पालक यात्रा संघ का आयोजन होता था आचार्य श्री उन सभी गांवों नगरों की जानकारी उसी गांव नगर में करते हैं। आचार्य श्री उस गांव नगर की भौगोलिक स्थिति, वहां के श्रावकों का स्वभाव एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी रेलवे स्टेशन, डाकखाना, हास्पिटल विद्यालय आदि समस्त सुविधा-असुविधा का सारा विवरण अंकित करते थे। आचार्य श्री विहारकाल में भी उन गांवों नगरों की स्थिति का वर्णन किया करते थे। उनकी पुस्तक मेरी निमाड़ यात्रा ऐसी कई पुस्तकें हैं जिनमें उन गांवों की जानकारियां उपलब्ध हैं।
ऐसा आचार्य देवेश श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की स्मृति में पूज्य मुनिराज श्री जयप्रभविजयजी म.सा. का प्रयास स्मृति ग्रन्थ प्रकाशन का अन्तः मन से हम अनुमोदन करता है एवं परम पूज्य आचार्य श्री के चरण कमलों में कोटि-कोटि नमन करता हैं। यह स्मृति ग्रंथ सुज्ञ जनों का मार्ग प्रशस्त करेगा यह कामना ।
प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ
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अर्जुन प्रसाद मेहता (पावापुरी वाले) मुख्य व्यवस्थापक
प्रति,
('s ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण ' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
डीक ठीक
वाल्मिकि प्रसाद मेहता भोजशाला प्रबंधक श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
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