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यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथः सन्देश- वन्दन
कोटि कोटि वन्दनारे..... कि कि
आचार्य श्री आगम ज्ञाता थे
या संयमवृत अंगीकार कर जीवन जयंती उसका पालन करना एक बड़ी उपलब्धी मानी जाती है। संयम वृत अंगीकार करना प्रत्येक व्यक्ति के सामर्थ की बात भी नहीं है। बड़ी पुण्यवानी के पश्चात ऐसा दुलर्भ अवसर प्राप्त होता है इसके साथ ज्ञान प्राप्ति भी हो जावे तो वह सोने पे सुहागा बन जाता है। कारण कि ज्ञान भी प्रत्येक व्यक्ति को सहज ही उपलब्ध नहीं होता है। कभी-कभी सामान्य से सामान्य बात भी व्यक्ति समझ नहीं पाता है। जो बात एक छोटा बालक कभी-कभी आसानी से समझ लेता है वहीं बात एक प्रौड़ व्यक्ति साफ नहीं समझ पाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि ज्ञान प्राप्त करना भी भाग्य एवं पुरुषार्थ की बात है।
उस पर तात्विक ज्ञान प्रागण करना भी भाग्य एवं पुरुषार्थ की बात है उस पर तात्विक ज्ञान प्राप्त करना तो और भी कठिन होता है। तात्विक ज्ञान आगम साहित्य से सतत अध्ययन से मिलता है। हर कोई व्यक्ति आगम साहित्य के रहस्य को समझ नहीं सकता फिर वह व्यक्ति गृहस्थ हो अथवा साधु । आगम ज्ञान प्राप्त करना भी भाग्य की बात है। पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. उच्च कोटि के साहित्यकार तो थे ही उन्होंने आगम साहित्य का भी तत्स्पर्शी अध्यय था।
इसी कारण वे आगम ज्ञाता भी माने जाते थे। उनके आगम ज्ञान का प्रमाण उनके प्रवचन साहित्य तथा उनके द्वारा रचित अन्य साहित्यिक कृतियों में उपलब्ध है। आज जब यह ज्ञात हुआ कि उनकी स्मृति में श्रीमद् यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ प्रकाशन हो रहा है हृदय प्रसन्नता से भर गया। मैं आपके इस आयोजन की अन्तर्मन से सफलता की कामना करते हुए पूज्य आचार्य भगवंत के चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हूं।
प्रति,
ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण'
-- संघवी बालचन्द रामाणी ट्रस्टी श्री मोहनखेड़ा तीर्थ प्रधान सम्पादक
श्री मोहनखेड़ा तीर्थ गुड़ा बालोतरा-नैल्लूर श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ PRESENxxxnxNENENENERENENER/NERERENERrNER2 (14) NENENENENENENENENENENENENENENENENENENENM
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