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- यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथःसन्देश- वन्दन कोटि कोटि वन्दनारे..... किमीकि
आचार्य श्री कोमल हृदयी थे कि सामान्यतः मनुष्य दो प्रकार के होते हैं। एक बादाम के सामान है और दूसरे खारक के समान। जो बादाम के समान होते हैं वे ऊपर से अथवा बाहर से बड़े कठोर दिखाई देते हैं ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे व्यक्ति किसी भी मूल्य पर अपने विचारों से नहीं हटेंगे। वे पाषाण से भी कठोर व्यवहार करते दिखाई देते हैं, किन्तु अंदर से उनका हृदय बादाम की गिरी की भांति कोमल होता है।
किसी का भी दुःख-दर्द देखकर उनका हृदय द्रवित हो जाता है और वे अपना कार्य या अपना-अपना दुःख दुःखी व्यक्ति के दुःख को कष्ट को दूर करने में लग जाते हैं, इसके विपरीत दूसरे प्रकार के व्यक्ति होते हैं वे ऊपर से तो खारक की भांति मुलायम होते हैं बड़ी दया करूणा दिखाते हैं मीठे वचन बोलते हैं, किन्तु अन्दर से खारक की गुठली की भांत कठोर होते हैं उनका हृदय कभी भी दुःखी असहाय व्यक्ति को देखकर पिघलता नहीं है वे पाषाणवत् बने रहकर अपनी स्वार्थ सिद्धि में
लगे रहते हैं।
व्याख्यान वाचस्पति स्व. आचार्य देव श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. बहुत ही कोमल हृदय के थे किसी भी दीन दुःखी को देखकर उनका हृदय द्वीत हो जाया करता था और उस व्यक्ति की किसी न किसी प्रकार से सहायता अवश्य करवाते थे। वे सही अर्थों में प्रथम प्रकार से सहायता अवश्य करवाते थे। वे सही अर्थों में प्रथम प्रकार के महापुरुष थे। यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि आचार्यश्री की स्मृति में आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है। मैं आचार्यश्री के श्री चरणों में अपनी वंदना प्रस्तुत कर स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन के आयोजन की हृदय से मंगल कामना करता हूं।
शाकडीबिनिशाना प्रति , ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण'
किमी श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
___- मांगीलाल छाजेड़
मैनेजिंग ट्रस्टी, श्री मोहनखेड़ा तीर्थ श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ
प्रधान सम्पादक
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