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________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश- वन्दन कोटि कोटि वन्दनार... popsiकिनकि योग्य गुरु के योग्य शिष्य जगी जब यह ज्ञात हुआ कि परम पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की दीक्षा शताब्दी के अवसर पर एक स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है तब मेरा ध्यान सहसा उनके गुरुदेव की ओर गया। उन्होंने प्रातः स्मरणीय विश्व पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के सान्निध्य में खाचरौद जिला-उज्जैन में दीक्षा वृत्त अंगीकार किया था। प्रातः स्मरणीय गुरुदेव श्री उच्चकोटि के साधक एवं संयम आराधक होने के साथ एक महान साहित्यकार भी थे। - उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना कर मां भारती के भंडार में अभिवृद्धि की है। उनके द्वारा रचित अभिधान राजेन्द्र कोष आज संपूर्ण विश्व में उनकी कीर्ति पताका फहरा रहा है। ऐसे महान गुरु का शिष्य होने का गौरव आचार्य श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. को मिला। वे भी अपने गुरुदेव के पदचिह्नों पर ही चले वे स्वयं भी उच्चकोटि के साधक थे और संयम पालन में शिथिलता उन्हें स्वीकार नहीं थी। संयम पालन के मामले में वे निश्चय ही कठोर थे। अपने गुरुदेव की भांति ही उन्होंने भी गहन अध्ययन कर अपने ज्ञान में अभिवृद्धि की ओर विभिन्न विषयों की साठ से भी अधिक पुस्तकों की रचना कर हिन्दी साहित्य के भंडार में अभिवृद्धि की। इतना ही नहीं विद्वानों का सम्मान करते हुए उन्होंने उनको सहयोग प्रदान कर महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की साथ ही एक महत्वपूर्ण कार्य भी आपने सम्पन्न किया। वह कार्य था गुरुदेव श्री द्वारा रचित श्री अभिधान राजेन्द्र विश्व कोष का संपादन कर मुद्रित करवाना। कीति इस प्रकार श्रद्धेय आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरिजी म.सा. ने अपने आपको एक योग्य गुरु का योग्य शिष्य प्रमाणित किया। स्मारक ग्रंथ प्रकाशन योजना का में हार्दिक समर्थन करते हुए उसकी सफलता की शुभकामना करता हूं और पूज्य आचार्य श्री के चरणों में सविधि नमन करता हूं। प्रति, यिनकाशा ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ चंपालाल पुखराजजी चौपड़ा , आहोर प्रधान सम्पादक ट्रस्टी श्री मोहनखेड़ा तीर्थ श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ INENENENENINENENENINBINENENENENBIHNENENBR (15) NBNeNURUNBNESENBABIESUNENENENENINENBNNE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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