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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य विवरण जुड़े जिनकी सूचना उसके स्थानांग के विवरण से मिलती तक प्रश्नव्याकरण के उपर्युक्त दो प्राचीन लुप्त संस्करणों की है। इसके पश्चात् ईसा की चौथी शताब्दी में ऋषिभाषित आदि भाग विषयवस्तु का प्रश्न है, उसमें से प्रथम संस्करण की विषयवस्तु अलग किये गये और उसे निमित्तशास्त्र का ग्रन्थ बना दिया, समवायांग अधिकांश रूप से एवं कुछ परिवर्तनों के साथ वर्तमान में उपलब्ध का विवरण इसका साक्षी है। इस काल में प्रश्नव्याकरण के नाम से ऋषिभाषित (इसिमासियाई), उत्तराध्ययन, सूत्रकृतांग एवं ज्ञाताधर्मकथा वाचनाभेद से अनेक ग्रन्थ अस्तित्व में थे ऐसी भी सूचना हमें आगम- में समाहित है। द्वितीय निमित्तशास्त्र सम्बन्धी संस्करण की विषयवस्तु, साहित्य से मिल जाती है। लगभग ईसा की ६ वी शताब्दी के उत्तरार्ध जयपायड और प्रश्नव्याकरण के नाम से उपलब्ध अन्य निमित्तशास्त्रों में इन ग्रन्थों के स्थान पर वर्तमान प्रश्नव्याकरण सूत्र का आश्रृंव एवं के ग्रन्थों में हो सकती है। यद्यपि इस सम्बन्ध में विशेषरूप से संवर के विवेचन से युक्त वह संस्करण अस्तित्व में आया है जो वर्तमान शोध की आवश्यकता है। आशा है विद्वद्जन इस दिशा में ध्यान में हमें उपलब्ध है। यह प्रश्नव्याकरण का अन्तिम संस्करण जहाँ देंगे। सन्दर्भ पण्हावागरणेसु अद्भुत्तरं पसिणसयं अद्भुत्तरं अपसिणसय अठ्ठत्तरं बाहुपसिणाई अद्दागपसिणाई, अनेवि विचित्ता विज्जाइसया, नाग-सुवण्णेहिं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया नाग-सुबन्नेहिं सद्धिं दिव्च संवाया सद्धिं दिव्या संवाया आघविज्जन्ति। आधविज्जति। -समवायांगसूत्र, ५४६। पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वागरणगंथाओ पभिति............! इसिभासियाई-३१। वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जतीओ, संखेज्जाओ, पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-उवमा, संख, संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। इसिभासियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासियाई, खोमगपसिणइं, से णं अंगठ्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंघे, पणयालीसं अज्झयणा, कोमलपसिणाई, अद्दागपसिणाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई। ---- पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाई स्थानांगसूत्र, १०/११६ पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता से किं तं पण्हावागरणाणि? पण्हावागरणेसु अत्तरं पसिणसयं पज्जवा, परित्ता तसा, अणन्ता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया अट्ठत्तरं अपसिणसयं, अद्रुत्तरं सिणापसिणसयं विज्जाइसया नाग-सुवनेहि जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जन्ति, पण्णविज्जन्ति, परूविज्जन्ति, सद्धिं दिव्चा संवाया आघविज्जंति। दंसिज्जन्ति, निदंसिज्जन्ति, उवदंसिज्जन्ति । पण्हावागरणदसासु णं ससमय-परसमय पण्णवय-पत्तेअबुद्ध- से एवं आया, एवं नाया एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा विविहत्थभासा-भासियाणं अइसयगुण-उवसम-णाणप्पगार आधविज्जई, सत्तं पण्हावागरणाई। -नन्दीसूत्र,५४। आयरियभासियाणं वित्थरेणं, वीरमहेसीहिं विविहवित्थरभासियाणं च आक्षेपविक्षेपैहेंतुनयाश्रितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम्, जगहियाणं अद्दागंगुट्ठ-बाहु-असि-मणि-खोम-आइच्चभासियाणं तस्मिल्लौकिकवैदिकानामर्थानां निर्णयः। - तत्वार्थवार्तिक, १/२० विविहमहापसिणविज्जा-मणपसिणविज्जा-देवयपयोग-पहाण-गुणप्पगासियाणं (पृ० ७३-७४)। सब्भूयदुगुणप्पभाव-नरगणमइविम्हयकराणं अइसयमईयकालसमय अक्खेवणी विक्खेवणी -संवेयणी णिव्वेयणी चेदि चउविहाओ दम-सम-तित्थकरुत्तमस्स ठिइकरणकारणाणं दुरहिगम-दुरवगाहस्स कहाओ वण्णेदि तत्थ अक्खेवणी नाम छद्दव्व-णव पयत्थाणं सरूवं सव्वसनत्रुसम्मअस्स अबुह-जण-विबोहणकरस्स पच्चक्खयपच्चयकराणं दिगंतरसमयांतर-णिराकरणं मुद्धिं करेंती परूवेदि। पण्हाणं विविहगुणमहत्या जिणवरप्पणीया आघविज्जति। विवखेवणी णाम परसमएण ससमयं दूसंती पच्छा दिगंतरसुद्धिं करती पण्हावागरणेसु णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जाओ ससमयं थावंती छद्दव्वा-णवपयत्थे परूवेदि। पडिवत्तीओ, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ संवेयणी णाम पुण्णफलसंकहा। काणि पुण्णफलाणि? तित्ययरनिज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ। गणहर-रिसि-चक्कवट्टि-बलदेव-सुर-विज्जाहररिद्धीओ। सेणं अंगट्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं उद्देसणकाला, णिव्वेयणी णाम पावफलसंकहा। काणि पावफलाणि? णिरय-तिरियपणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाणि पयसपसहस्साणि पयग्गेणं कुमाणुसजोणीसु जाइ-जरा-मरण-वाहि-वेयणा- दालिद्दादीणि। पण्णत्ताई। संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता संसारसरीरभोगेसु वेरग्गुप्पाहणी णिव्वेयणीणा........। तसा, अणंता थावरा, सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति निदंसिअति उवदंसिज्जंति। पण्हाओ हद-नट्ठ-मुट्ठि-चिंता-लाहालाह-सुह-दुक्ख-जीविय- मरणसे एवं आया, से एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरूवणया जय-पराजय-णाम-दव्वासु-संखं च परूवेदि। आघविज्जति। से तं पाहावागरणाई १०१ --धवला, पुस्तक १, भाग१, पृ० १०७-८। -समवायांगसूत्र, ५४६-५४९। ८. वागरणगंथाओ पभिति जाव सामित्तं इमं अज्झयणं ताव इमो बीओ ५. से किं तं पण्हावागरणाई? पण्हावागरणेसु णं-अट्ठत्तरं पसिणसयं, पाढो दिस्सति, तंजहा: अद्भुत्तरं अपसिणसयं. अद्रुत्तर पसिणापणिसयं, तंजहा-अंगुट्ठपसिणाई, - इसिभासियाई, अध्याय ३१। twitamindaridrianitarianoramidstimonitor- २०३ -dramaroharirikardiotaridroriandorkaritoriarokaran ७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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