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________________ - વર્તન અના- tત્વ ઉપામ - ૨૫ पसे अलग कर दी गई और नन्दीसूत्र के रचना-काल तक उसके अन्तकृद्दशा का सातवाँ अध्ययन भयाली (भगाली) है। 'भगाली मेतेज्ज' स्थान पर नवीन संस्करण किस प्रकार अस्तित्व में आ गया। ऋषिभाषित के १३ वें अध्ययन में उल्लिखित है। स्थानांग की सूची यदि हम दिगम्बर-साहित्य की दृष्टि से इस प्रश्न पर विचार करें में अन्तकृद्दशा के आठवें अध्ययन का नाम किंकम या किंकस है। तो हमें सर्वप्रथम तत्त्वार्थवार्तिक में अन्तकृद्दशा की विषय-वस्तु से वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृद्दशा में छठे वर्ग के द्वितीय अध्याय का सम्बन्धित विवरण उपलब्ध होता है। उसमें निम्न दस अध्ययनों की नाम किंकम है, यद्यपि यहाँ तत्सम्बन्धी विवरण का अभाव है। स्थानांग सूचना प्राप्त होती है-नमि, मातंग, सोमिल, रामपुत्त, सुदर्शन, में अन्तकृद्दशा के ९वें अध्ययन का नाम चिल्वक या चिल्लवाक है। यमलीक, वलीक, किष्कम्बल और पातालम्बष्ठपुत्र(४) यदि हम स्थानांग कुछ प्रतियों में इसके स्थान पर 'पल्लेतीय' ऐसा नाम भी मिलता है। में उल्लिखित अन्तकृद्दशा के दस अध्ययनों से इनकी तुलना करते इसके सम्बन्ध में भी हमें कोई विशेष जानकारी नहीं हैं। दिगम्बर आचार्य हैं तो इसके यमलिक और वलिक ऐसे दो नाम हैं, जो स्थानांग के अकलंकदेव भी इस सम्बन्ध में स्पष्ट नहीं है। स्थानांग में दसवें अध्ययन उल्लेख से भिन्न है। वहाँ इनके स्थान पर जमाली, मयाली (भगाली) का नाम फालअम्बडपुत्त बताया है, जिसका संस्कृतरूप पालअम्बष्ठपुत्र ऐसे दो अध्ययनों का उल्लेख है। पुन: चिल्वक का उल्लेख हो सकता है। अम्बड संन्यासी का उल्लेख हमें भगवतीसूत्र में विस्तार तत्त्वार्थवार्तिककार ने नहीं किया है। उसके स्थान पर पाल और अम्बष्ठपुत्र से मिलता है। अम्बड के नाम से एक अध्ययन ऋषिभाषित में भी ऐसे दो अलग-अलग नाम मान लिये हैं। यदि हम इसकी प्रामाणिकता है। यद्यपि विवाद का विषय यह हो सकता है कि जहाँ ऋषिभाषित की चर्चा में उतरें तो स्थानांग का विवरण हमें सर्वाधिक प्रामाणिक और भगवती उसे अम्बड परिव्राजक कहते हैं, वहाँ उसे अम्बडपुत्त लगता है। कहा गया है। स्थानांग में अन्तकृद्दशा के जो दस अध्याय बताये गये हैं उनमें ऐतिहासिक दृष्टि से गवेषणा करने पर हमें ऐसा लगता है कि नमि नामक अध्याय वर्तमान में उत्तराध्ययनसूत्र में उपलब्ध है। यद्यपि स्थानांग में अन्तकृद्दशा के जो १० अध्ययन बताये गये हैं वे यह कहना कठिन है कि स्थानांग में उल्लिखित 'नमि' नामक अध्ययन यथार्थ व्यक्तियों से सम्बन्धित रहे होंगे क्योंकि उनमें से अधिकांश के और उत्तराध्ययन में उल्लिखित 'नमि' नामक अध्ययन की विषय-वस्तु उल्लेख अन्य स्रोतों से भी उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे है एक थी या भिन्न-भिन्न थी। नमि का उल्लेख सूत्रकृतांग में भी उपलब्ध जिनका उल्लेख बौद्ध-परम्परा में मिल जाता है यथा-रामपुत्त, सोमिल, होता है। वहाँ पाराशर, रामपुत्त आदि प्राचीन ऋषियों के साथ उनके मातंग आदि। नाम का भी उल्लेख हआ है। स्थानांग में उल्लिखित द्वितीय 'मातंग' अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु के सम्बन्ध में विचार करते समय नामक अध्ययन ऋषिभाषित के २६वें मातंग नामक अध्ययन के रूप हम सुनिश्चितरूप से इतना कह सकते हैं कि इन सबमें स्थानांग में आज उपलब्ध है। यद्यपि विषय-वस्तु की समरूपता के सम्बन्ध सम्बन्धी विवरण अधिक प्रामाणिक तथा ऐतिहासिक सत्यता को मे यहाँ भी कुछ कह पाना कठिन है। सोमिल नामक तृतीय अध्ययन लिये हुए है। समवायांग में एक ओर इसके दस अध्ययन बताये गये का नामसाम्य ऋषिभाषित के ४२वें सोम नाम अध्याय के साथ देखा हैं तो दूसरी ओर समवायांगकार सात वर्गों की भी चर्चा करता है। जा सकता है। रामपुत्त नामक चतुर्थ अध्ययन भी ऋषिभाषित के तेईसवें इससे ऐसा लगता है कि समवायांग के उपर्युक्त विवरण लिखे अध्ययन के रूप में उल्लिखित है। समवायांग के अनुसार द्विगृद्धिदशा जाने के समय स्थानांग में उल्लिखित अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु के एक अध्ययन का नाम भी रामपुत्त था। यह भी सम्भव है कि बदल चुकी थी, किन्तु वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृद्दशा का पूरी तरह अन्तकृद्दशा, इसिभासियाई और द्विगृद्धिदशा के रामपुत्त नामक अध्ययन निर्माण भी नहीं हो पाया था। केवल सात ही वर्ग बने थे। वर्तमान की विषय-वस्तु भिन्न हो चाहे व्यक्ति वही हो। सूत्रकृतांगकार ने रामपुत्त में उपलब्ध अन्तकृद्दशा की रचना नन्दीसूत्र में तत्सम्बन्धी विवरण लिखे का उल्लेख अर्हत्-प्रवचन में एक सम्मानित ऋषि के रूप में किया जाने के पूर्व निश्चित रूप से हो चुकी थी क्योंकि नन्दीसूत्रकार उसमें है। रामपुत्त का उल्लेख पालित्रिपिटक-साहित्य में हमें विस्तार से मिलता १० अध्ययन होने का कोई उल्लेख नहीं करता है। साथ ही वह है। स्थानांग में उल्लिखित अन्तकृद्दशा का पाँचवाँ अध्ययन सुदर्शन आठ वर्गों की चर्चा करता है। वर्तमान अन्तकृद्दशा के भी आठ वर्ग है। वर्तमान अन्तकृद्दशा में छठे वर्ग के दशवें अध्ययन का नाम सुदर्शन ही हैं। है। स्थानांग के अनुसार अन्तकृद्दशा का छठा अध्ययन जमाली है। उपर्युक्त विवरण से हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि वर्तमान अन्तकृद्दशा में सुदर्शन का विस्तृत उल्लेख अर्जुन मालाकार के अध्ययन में उपलब्ध अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु नन्दीसूत्र की रचना के कुछ में भी है। जमाली का उल्लेख हमें भगवतीसूत्र में भी उपलब्ध होता समय पूर्व तक अस्तित्व में आ गई थी। ऐसा लगता है कि वल्लभीहै। यद्यपि भगवतीसूत्र में जमाली को भगवान् महावीर के क्रियमाणकृत वाचना के पूर्व ही प्राचीन अन्तकृद्दशा के अध्यायों की या तो उपेक्षा के सिद्धान्त का विरोध करते हुए दर्शाया गया है। श्वेताम्बर-परम्परा कर दी गयी या उन्हें यत्र-तत्र अन्य ग्रन्थों में जोड़ दिया गया था और जमाली को भगवान् महावीर का जामातृ भी मानती है। परवर्ती साहित्य इस प्रकार प्राचीन अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु के स्थान पर नवीन नियुक्ति, भाष्य और चूर्णियों में भी जमाली का उल्लेख पाया जाता विषयवस्तु रख दी गयी। यहाँ यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न है और उन्हें एक निह्नव बताया गया है। स्थानांग की सूची के अनुसार हो सकता है कि ऐसा क्यों किया गया। क्या विस्मृति के आधार पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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