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________________ यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ- जैन आगम एवं साहित्य 'वाचनाचार्य के स्थान पर 'क्षमाश्रमण' पद का उल्लेख किया हो।" १९. वही, पृ. २०-२१ - गणधरवाद : प्रस्तावना, पृ. ३१ ६. जैन गुर्जर कविओ, भा. २, पृ. ६६९ ७. जीतककल्पचूर्णि, गा. ५-१० ( जीतकल्पसूत्र : प्रस्तावना, पृ. ६-७) ८. गणधरवाद : प्रस्तावना, पृ. ३२-३३ ९. यह चूर्णि अनुयोगद्वार के अंगुल पद पर है जो जिनदास की चूर्णि तथा हरिभद्र की वृत्ति में अक्षरशः उद्धृत है। Jain Education International १०. नियुक्तिलघुभाष्य - वृत्युपेत - बृहत्कल्पसूत्र (षष्ठ भाग) : प्रस्तावना, पृ. २० १२. वही, पृ. २१-२२ १३. सीहो सुदाढ नागो आसग्गीवो य होइ अण्णेसिं । सिंहो मिगद्धओ त्ति य होइ वसुदेवचरियम्मि॥ सीहो चेव सुदाढो, जं रायगिहम्मि कविलबडुओ ति । सीसड् बवहारे गोयमोवसमिओ स णिक्खतो ।। { ९७ Jana - सीहो तिविट्ठ निहतो, भमिउं रायगिह कबलि बडुगत्ति । जिणवर कहममणुबसम गोयमोबसम दिक्खा य ।। For Private Personal Use Only विशेषणवती, ३३-३४. व्यवहारभाष्य १९२ ট www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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