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-यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ- परिशिष्टमनीष गाते गुण हैं जिन्हीं का,
सदा सुखी जीवन है उन्हीं का । सदा मनोवृत्ति अहो ! सुचारी,
यतीन्द्रसूरीश्वर ब्रह्मचारी । । ५ । । दिखा जनों को शुभ नीति प्यारी, लगा रहे मानसवृत्ति सारी । जिनेन्द्र-संदेश सदा पुकारी,
यतीन्द्रसूरीश्वर ब्रह्मचारी | ६ || न कोपमूर्छा-मद-मान जानो,
न दंभ- माया अरु लोभ मानो। मनोज्ञ वाणी मृदु मिष्टकारी,
यतीन्द्रसूरीश्वर ब्रह्मचारी ।।७।।
कुपन्थ मिथ्यात्व - स्वरूपटारी,
महीजनों के मनमोदकारी।
महान् चारित्र सहर्ष - धारी,
यतीन्द्रसूरीश्वर ब्रह्मचारी ।।८।।
द्रुतविलम्बितछन्द
यह गुणाष्टक गान यतीन्द्र का,
सतत संपत्तिकार मुनीन्द्र का ।
मनुज जो पढ़ता अति प्रेम से, वह लहे फल वल्लभ नेम से ।। ९ ।।
पञ्चचामरच्छन्दः
* आचार्यदेव श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरचरणरेणुमुनिवल्लभविजयः
कलानिधानबन्धुरं धुरन्धरं निमज्जतां,
भवोदधाववाप्य भारतीं शिशावनर्गलाम् ।
दिनेशवद् विराजितं जगत्त्रयेऽपराजितं,
भजे यतीन्द्रसूरिणं सुसूरिचक्रवर्त्तिनम् ।।१।। कुशेशयं यथोपयान्ति षट्पदास्तथैव यं, श्रवन्ति भावुका मुदा वचोविलासलोलुपाः ।
ম[ २४ ]
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