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- यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व – भूगोलवेत्ता आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरिजी म.
सेठ सुजानमल जैन राजगढ़ (ट्रस्टी श्री मोहनखेड़ा तीर्थ)....
जो प्रातः स्मरणीय. विश्व पूज्य गुरुदेव जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के परम पावन श्रीचरणों में संयम अंगीकार करने के पश्चात् आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने अपना सारा ध्यान गुरुसेवा और अध्ययन की ओर लगा दिया था। सूरि पद पर अलंकृत होने के पश्चात् तो ज्ञानाराधना के क्षेत्र में आप और भी अधिक दत्तचित्त हो गए थे। आप ने कुछ ऐसे विषयों पर भी ध्यान दिया, जिन पर प्रायः जैनमुनि नहीं के बराबर लिखते हैं। आप ने अपनी विहार-यात्राओं को पुस्तकाकार रूप प्रदान किया और इन पुस्तकों में आप ने नगर से नगर की दूरी गाँव से गाँव की दूरी, ठहरने योग्य स्थान की जानकारी तो दी ही है। इस जानकारी से विहार करने वाले जैन साधु-साध्वियों को आज भी सुविधा होती है। इस दृष्टि से आप का यह साहित्य आज भी जीवंत है। आप ने अपने इस प्रकार के साहित्य में इतिहास विषय पर भी अपना ध्यान दिया और तीर्थ स्थानों का इतिहास, ग्राम-नगरों का इतिहास, तत्रस्थ जैन मंदिरों में विद्यमान प्रतिमाओं के लेखों का संग्रह तथा अन्य उपयोगी लेखों का संग्रह कर एक स्तुत्य कार्य किया है। आप ने अपनी पुस्तक 'मेरी निमाड़ यात्रा' में भूगोल-विषयक जानकारी का इस प्रकार लेखन किया है, जैसे एक भूगोलवेत्ता करता है।
जैन धर्म में भूगोल-विषयक साहित्य भी काफी है। पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा आदि के विषय में जैनदृष्टि कुछ भिन्न है। हमारा उद्देश्य यहां वह सब प्रस्तुत करना नहीं है, हम तो केवल यहां यह प्रमाणित करने का प्रयास करेंगे कि आचार्य देव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का भूगोल विषयक ज्ञान किसी भूगोलवेत्ता से कम नहीं था। जिस प्रकार एक भूगोलवेत्ता किसी क्षेत्रविशेष का भूगोल विषय की दृष्टि से वर्णन करता है। ठीक उसी प्रकार का वर्णन कर आपने यह प्रमाणित कर दिया है कि आप किसी भूगोलवेत्ता से कम नहीं हैं। 'मेरी निमाड़ यात्रा' पुस्तक का प्रारम्भ ही आप ने निमाड़ और उसके विभाग से किया है। इसमें आप ने लिखा है - 'प्राचीनकाल में इस परगने का महू से बराड़ और दोहद से खण्डवा तक विस्तार था। वर्तमान में महू से विंध्याचल और जोबट से खण्डवा तक का प्रदेश निमाड़ माना जाता है। कतिपय इतिहासज्ञ नर्मदा नदी महिष्मती (महेश्वर) के आसपास के प्रदेश का नाम 'अनूपदेश' और बराड़ प्रांत जिस समय इसमें सम्मिलित था, उसके कारण विदर्भ देश कहते हैं।' (पृष्ठ १) यह निमाड़ की सीमा हुई।
आप ने इस प्रदेश के नाम पर भी विचार किया है और बताया है कि इस प्रदेश का नाम नम्याट या नम्यार भी था, जो बिगड़कर वर्तमान में निमाड़, नीमाड, नेमार या नीमार हो गया। इसके पश्चात् आपने यह स्पष्ट किया है कि इस प्रदेश की राजधानी माहिष्मती को किसने और कब बसाया था तथा यह प्रदेश कब-कब किस-किसके अधीन रहा। आगे आप ने इस प्रदेश के दो विभाग बताते हुए तथा उसकी तहसीलों के नाम देते हुए क्षेत्रफल बताया है।
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