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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व कृतित्व
इसलिए साधु के समान यदि साध्वियाँ भी ग्राम नगरों में मर्यादापूर्वक विहार करती हुई स्त्री-पुरुष मिश्रित सभा में या महिलाओं की सभा में व्याख्यान प्रदान करें, तो इसमें शास्त्रकार कुछ दोष नहीं मानते और न उसका विरोध करते हैं।
अंत में शास्त्रकारों द्वारा व्याख्यान देने के लिए बनाए गये नियम भी दिए गये हैं। नियम देखें -
अकेली या अनेक स्त्रियों की सभा में साधुओं को और अकेले या बहुत पुरुषों की सभा में साध्वियों को व्याख्यान नहीं देना चाहिए। पुरुष एवं स्त्रियों की संयुक्त सभा में व्याख्यान में कोई आपत्ति नहीं है।
साधुओं को अकेले पुरुषों की सभा में तथा साध्वियों को अकेली स्त्रियों की सभा में अपनी मर्यादानुसार उपदेश देने में किसी तरह की दोषापत्ति नहीं है, यह मर्यादा निर्दोष है।
विशेष कारण की उपस्थिति में धार्मिक महालाभ की सम्भावना होने पर अकेले पुरुषों की सभा में साध्वियों व्याख्यान दे सकती हैं, परन्तु शास्त्रों की यह आज्ञा आपवादिक है । सदा आचरण में लेने योग्य नहीं है। यही बात अकेली स्त्रियों की सभा में साधु-विषयक भी समझना चाहिए।
इन बातों से यह सिद्ध होता है कि अपनी मर्यादा का पालन करते हुए साध्वियाँ व्याख्यान दे सकती हैं। उनके व्याख्यान देने और सूत्राभ्यास करने पर जो प्रतिबंध वाली बात कही गई है, वह सत्य नहीं है। आप ने इस विषय पर अपनी लेखनी चलाकर बहुत बड़े विवादास्पद विषय का निर्णय किया। ऐसा करना आप जैसे समर्थ आचार्य के साहस का ही कार्य है।
१५. श्री पौषध-विधि तथा अक्षयनिधितप - विधि इस पुस्तक में पौषध विधि तथा अक्षय निधि तप की विधि पर प्रकाश डाला गया है। प्रासंगिक प्रदर्शन में पौषध के पाँच अतिचार, पौषध के 'अठारह दोष तथा सामयिक के बत्तीस दोष भी बताए गए हैं। इस पुस्तक में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि यह तप कितना प्रभावशाली है और इसके आराधन से क्या लाभ मिलता है। इसमें कुछ कथा प्रसंगों को भी स्थान दिया गया है। पुस्तक हर काल में उपयोगी है। उक्त तपों के आराधकों के लिए इसका उपयोग करना हितकर है।
१६. कुलिंगवदनोद्गार-मीमांसा - आगमोदय समिति के नियंता महानुभाव सागरानन्द सूरिजी ने अपनी योग्यता का परिचय दिखलाने वाली एक यतीन्द्रमुख चपेटिका नाम की छोटी-सी पुस्तिका प्रकाशित की थी। इस पुस्तक में उसी का अकाट्य युक्ति और प्रमाणों से सभ्यतापूर्वक उत्तर दिया गया है। इसी पुस्तक से घबराकर सागरानन्द सूरि बिना शास्त्रार्थ किए ही पाँचवीं बार भी मारवाड़ से पलायन कर गए थे।
१७. जैनर्षिपट निर्णय - भगवान श्री महावीर स्वामी के सर्वमान्य शासन को मान्य करने वाले साधु और साध्वियों के लिए शास्त्रानुसार श्वेत मानोपेत और जीर्णप्राय अल्पमूल्य वस्त्र ही धारण करना चाहिए, रंगीन नहीं। इसी विषय को सुदृढ़ बनाने के लिए इसमें जैनागम और प्रामाणिक बहुश्रुताचार्यों द्वारा रचित ग्रंथरत्नों के ५१ पाठ मय हिन्दी- भावार्थ के दिए गए हैं।
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