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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - ऐतिहासिक दृष्टि से दिया गया है, जो आज के लेखकों के लिए सन्दर्भ का काम दे सकता है। इस यात्रा के अंत में सियाणा से पालीताणा तक मार्ग में आने वाले गांवों और उनके मध्य की दूरी जैन घर, देरासर, उपाश्रय, धर्मशाला आदि के साथ उनके मकाम की तिथियाँ भी दी गई हैं।
इसके आगे श्री कच्छ भद्रेश्वर यात्रा लघु संघ का विवरण है। प्रारम्भ में तीर्थ यात्रा का फल बताया गया है। निर्धारित मुहूर्त के अनुसार सिद्ध क्षेत्र पालीताणा से संघ का प्रयाण हुआ। मार्गवर्ती अपने विभिन्न लक्ष्यों तक पहुंचा। साथ में मार्गवर्ती गाँवों की सूची दी गई है, जिसमें उपर्युक्तानुसार समस्त जानकारी दी गई है। ___ इस भाग में सहसावन (गिरनार) का इतिहास विस्तार से दिया गया है। जूनागढ़ गोंडल, राजकोट, मोरवी, अंजार, भद्रेश्वर (वसई) का विवरण भी काफी दिया गया है। आगे कुछ और भी ग्राम, नगरों का विवरण है, जो उपयोगी है। अंत में परिशिष्ट है। परिशिष्टों के साथ स्तवना आदि दिए गए हैं। इनसे पुस्तक की उपयोगिता और अधिक बढ़ गई है। प्रस्तुत भाग भी वर्तमान समय में उपयोगी है।
(४) श्री यतीन्द्र विहार-दिग्दर्शन भाग ४ - इस भाग का प्रकाशन सन् १९३७ में हुआ। इस भाग के हार्दिक संदेश में आचार्यश्री ने लिखा है - 'इसका संकलन ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से हुआ है। इसलिए इससे इतिहासज्ञों को इतिहास की सामग्री मिलेगी और पैदल भ्रमण करने वालों को प्रति ग्राम नगरों का रास्ता मिलेगा।'
'प्रस्तुत ग्रंथ का यह चौथा भाग है, जिसमें पालीताणा से अहमदाबाद, अहमदाबाद से सेरीसा, पानसर, मणासा, बीजापुर, ईडर, पोशीना, केशरियाजी और केशरियाजी से नागफणी, दूंगरपुर, आशापुर, बड़ौदा, बांसवाड़ा, बाजना, खवासा, राजगढ़, रतलाम, खाचरौद, खाचरौद से बड़नगर, कड़ौद, राजगढ़, अमीझरा, धार, मण्डपाचल मनावर, तालनपुर, लखमणी, आलीराजपर. घोडा जोबट, बागट गुफा और कुक्षी तक के गाँवों तथा जैन तीर्थों का प्राचीन-अर्वाचीन इतिहास अलेखित है। इसमें दो परिशिष्ट भी संयोजित हैं । प्रथम परिशिष्ट में विहार के दरम्यान आए हुए छोटे-बड़े गाँवों के क्रमवार नाम, एक गाँव से दूसरे गाँव का अन्तर (कोश), उनमें जैनों की गृहसंख्या धर्मशालोपाश्रय, जिनालयसंख्या
और स्थिरवार के दिन का जनक कोष्ठक दर्ज है। द्वितीय परिशिष्ट में इस भाग में आए हुए जिनालय, जिन -प्रतिमा, धर्मशाला और उपाश्रय के संस्कृत, गद्य-पद्यमय प्रशस्ति तथा शिलालेखों का सरल हिन्दी अनुवाद गुम्फित है। इस कथ्य में चतुर्थ भाग का सार आ गया है। इससे इस भाग के महत्त्व का प्रतिपादन होता है। गाँव-नगरों का जो विवरण दिया गया है। वह उनके महत्त्व को प्रदर्शित करता है। गाँवनगरों के इतिहास को आप ने ऐतिहासिक ढंग से ही लिपिबद्ध किया है। ऐतिहासिक वर्णन के साथ ही साथ आप ने गाँव-नगर के भौगोलिक परिवेश का वर्णन कर अपने इस विहार-दिग्दर्शन साहित्य का महत्त्व और अधिक बढ़ा लिया है।
अन्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप ने परिशिष्ट में संस्कृत प्रशस्तिलेख, शिलालेख आदि का हिन्दी अनुवाद देकर उन पाठकों, विद्वानों पर उपकार ही किया है, जो संस्कृत भाषा नहीं जानते या समझते हैं।
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