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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - श्री यशोभद्र सूरिजी का संक्षिप्त जीवनचरित्र है, जो माननीय और चमत्कारपूर्ण है। परिशिष्ट नं. ३ में मारवाड़ देशस्थ गुड़ाबालोतरा से सेठ जीवाजी लखाजी के निकाले हुए जैसलमेर यात्रा संघ का वर्णन है
और परिशिष्ट नं. ४ में आचार्यश्री के वर्षावास काल में विभिन्न गांवों में भावुकों की ओर से आए हुए विज्ञप्ति-पत्र हैं।
प्रथम भाग की भाँति इस भाग में भी गाँव तथा नगरों का विवरण, जैनमतावलम्बियों की संख्या जैन मंदिरों तथा उपाश्रयों की जानकारी दी गई है। मार्गवर्ती जैन तीर्थों का इतिहास भी दिया गया है। मूर्तिलेख, शिलालेख, प्रशस्तिलेख भी दिए गए हैं। जो इतिहास निर्माण के लिए काफी उपयोगी और महत्त्वपूर्ण हैं। पृष्ठ १२६ पर मंत्री सायर का वंशवृक्ष भी दे रखा है। मंत्री सायर ने आदिनाथ प्रतिमा का दो बार उद्दार करवाया था। इसमें ऐसी ही और भी महत्त्वपूर्ण सामग्री संग्रहीत है। वर्तमान युग में भी यह प्रासंगिक है।
(३) श्री यतीन्द्र विहार-दिग्दर्शन भाग ३ - इसका प्रकाशन सन् १९३५ में हुआ। अपने प्राथमिक वक्तव्य में आप ने लिखा - 'भूमंडल का अवलोकन करने से प्रचुर (बहुत) लक्ष्मी मिलती है, विद्वानों के साथ परिचय होता है। नई-नई सुन्दर विद्याएँ प्राप्त होती हैं। नाना प्रकार की भाषा, वेश और लिपियों का ज्ञान होता है। कुन्द पुष्प के समान उज्ज्वल यश मिलता है, मन की दृढ़ता होती है और सत्पुरुषों का सम्मान करने से निजगुणों पर विश्वास जमता है। संसार में ऐसा कौन-सा गुण है, जो देशाटन से विकास प्राप्त न हो।' आपने आगे भी इस सम्बन्ध में लिखा है और पादविहार करने के लाभ बताए हैं। प्रस्तुत तीसरे भाग के सम्बन्ध में आप ने लिखा है - 'प्रस्तुत श्री यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन का यह तृतीय भाग भी अप्रतिबद्ध लम्बी मुसाफिरी (पादविहार) का द्योतक जानना चाहिए। इसमें हमारे विशाल विहार क्षेत्र में आए हुए रास्ते के गाँव, उनमें श्वेताम्बर जैन गृहों की संख्या, जिनालय, धर्मशाला, उपाश्रय और उनके प्रशस्तिलेख आदि प्राचीन अर्वाचीन ऐतिहासिक और भौगोलिक सामग्री आलेखित है, जो इतिहास - लेखकों के लिए उपयोगी और पाद-विहार करने वाले जैन साधु साध्वियों के लिए मार्गदर्शक है। इसके परिशिष्ट में संस्कृतमय प्रशस्ति लेखों का हिन्दी अनुवाद भी दर्ज है, जिससे प्रशस्ति लेखों का भाव नि:संदेह समझ में आ सकता है।'
इस तृतीय भाग में पालीताणा से भद्रेश्वर तीर्थ के लिए लघु संघ के प्रस्थान से विवरण दिया गया है। मार्गवर्ती गाँवों का इतिहास देते हुए वहाँ का विवरण है, साथ ही वहाँ उज्ज्वल विभिन्न लेख भी दिए गए हैं। वरमाण गाँव के लेख देखने से ज्ञात होता है कि ये लेख सं. १०१६, १२४२, १३१५, १३४२, १३५१, १३५६ के हैं। लेख जैन इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। दाँतीवाड़ा में सं. १२२६ का लेख है। इस लेख से ज्ञात होता है कि मूलनायक की अंजन शलाका सं. १२२६ में तपागच्छ-नायक श्री विजय सोम सूरिजी के हाथ से राउल गजसिंह समय में हुई है।
आगे पालनपुर के सम्बन्ध में भी विस्तार से लिखा है। इसी प्रकार सिद्धपुर, महेसाणा, जैन तीर्थ भोयणी, लींबड़ी आदि के सम्बन्ध में भी लिखा है। पालीताणा तीर्थ का विवरण काफी विस्तार एवं
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