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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - कि हिन्दी अनुवाद के माध्यम से इन लेखों की ऐतिहासिक सामग्री का सहज ही समुचित उपयोग हो सकता है। एक गाँव से दूसरे गाँव तक की दूरी को अंकित कर पाद-विहारी साधु-साध्वियों के लिए सुविधा उपलब्ध कर दी है। यद्यपि अब मार्ग काफी सुगम हो गए हैं, तथापि दूरी तो वही है। हाँ, यह हो सकता है कि इन ग्रामनगरों के मध्य कुछ गाँव और बस गए हों। ठहरने आदि की सुविधाओं में विस्तार ही हुआ होगा।
इस प्रकार यह सहज ही कहा जा सकता है कि आप द्वारा रचित श्री यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन भाग १. २,३,४ आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय थे। दूसरी बात इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण यह है कि गाँवों और कस्बों का इतिहास इन पुस्तकों के माध्यम से सहज ही तैयार किया जा सकता है।
की तीसरी बात जैन धर्मावलम्बियों की दृष्टि से यह है कि उस समय की अपनी स्थिति से वर्तमान स्थिति की तुलना कर देखें कि कितनी उन्नति अथवा अवनति हुई है। निश्चय ही आचार्यश्री ने इन पुस्तकों की रचना कर बहुत बड़ा उपकार किया है।
(५) मेरी नेमाड़ यात्रा- यह पुस्तक भी विहार-दिग्दर्शन ही है। यदि इसे भी विहार दिग्दर्शन भाग के रूप में प्रकाशित कर दिया जाता तो भी कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि एक ही क्षेत्र से सम्बन्धित होने से आचार्य भगवन् ने इसे स्वतंत्र पुस्तक का स्वरूप प्रदान करना उचित समझा। कुछ भी हो, मेरी नेमाड़ यात्रा काफी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करने वाला दस्तावेज है।
इस पुस्तक के प्राथमिक वक्तव्य में आचार्यश्री ने लिखा है - 'इस प्रांत में दो-तीन मर्तबा हमको भी विहार करने का अवसर मिला। उसके दरम्यान हमने यहाँ के प्राचीन जिनालय, उनके खण्डहर, उनके ध्वंसावशेष खंडित मूर्तियाँ, उनके अवयव, नदियाँ, तालाब, शिक्षा, व्यवसाय, भाषा, सभ्यता और लोकस्थिति आदि का निरीक्षण किया।
बस, प्रस्तुत 'मेरी नेमाड़ यात्रा' पुस्तक में उन्हीं बातों का दिग्दर्शन मात्र वृत्तांत लिखा गया है, जिसको उक्त उद्देश्य की अभिवृद्धि स्वरूप समझना चाहिए।
इस पुस्तक के प्रारम्भ में आचार्यश्री ने नेमाड़ का भौगोलिक वर्णन प्रस्तुत किया है। सर्वप्रथम आप ने नेमाड़ और उसके विभाग बताए हैं, फिर इस प्रदेश के नाम पर विचार किया गया है। इसमें आप ने माहिष्मती के संक्षिप्त इतिहास पर भी प्रकाश डाला है। तदुपरांत आप ने बताया कि नीमाड़/नेमाड़ के मुख्य दो विभाग हैं- एक मध्य प्रांत (अंग्रेजी राज्य. का नीमाड़) और दूसरा मध्य भारत (देशी रियासतों का नीमाड)। फिर दोनों के विस्तार क्षेत्रफल को बताया गया है। इसके पश्चात विंध्याचल और सतपडा पर्वतों का विवरण है। इस विवरण में इन पर्वतों का विस्तार और उनकी प्रमुख चोटियों की ऊँचाई भी दी गई है। पर्वतों के विवरण के पश्चात् नीमाड़ क्षेत्र में बहने वाली प्रमुख नदियों का वर्णन किया गया है। इन नदियों के परिक्षेत्र का सूक्ष्म वर्णन किया गया है। नदियों के वर्णन के पश्चात्, नीमाड़ की गर्मी व वर्षा का विवरण है, फिर आवागमन के साधन, जनसंख्या और शिक्षा, व्यवसाय और अंधविश्वास, भाषा और सभ्यता का विवरण दिया गया है।
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