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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व धरती पर सूरज उतरा ज्योतिषाचार्य ज्योतिषसम्राटशिरोमणि मुनिराज जयप्रभविजयजी श्रमण...... जीवन : 2 इस धरा पर असंख्य आत्माएँ देह धारण कर अपनी जीवन यात्रा सम्पन्न करती रही हैं, कर रही हैं और करती रहेंगी। यह क्रम असमाप्य है तथा अनंत है तथा असीम है। विश्व के समस्त प्राणियों में मानव को सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है। इसका कारण यह है कि समस्त प्राणियों में मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो विवेकसम्पन्न और बुद्धिमान है। वह अपना हिताहित विचार कर कार्य कर सकता है, करता है। इसके अतिरिक्त एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यही वह भव है जिसमें रहकर मानव साधना करते हुए अपने कर्मों का क्षय कर परम मोक्ष पद को प्राप्त कर सकता है। यह अवसर देवताओं को भी सुलभ नहीं है। इसी कारण देवता भी मानव भव में जन्म लेने के लिए तरसते रहते हैं। धरती पर जन्म लेने वाले असंख्य मानवों में कुछ महामानव भी होते हैं, जो समाज का नेतृत्व करते हैं और दुर्लभ मानव भव को सार्थक करने के लिए सतत् प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं। जो भाग्यशाली होते हैं, वे प्रेरणा पाकर अवसर का लाभ उठा लेते हैं और जो माया-मोह के जाल में उलझे रहते हैं, वे अज्ञानतावश उसी में अपने जन्म की सार्थकता समझते हैं। यह उनकी भूल है जिसे वे अंतिम क्षण तक नहीं समझ पाते हैं। ज्ञानी पुरुष उसी को कहा जाता है जो नश्वर संसार की असारता को जानकर अपने जीवन को सार्थक करने का प्रयत्न करता रहता है। हम इस आलेख में ऐसे ही एक महापुरुष, महामानव के प्रारंभिक जीवन का विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। जीवन प्रभात - राजस्थान की भूमि त्याग और बलिदान की भूमि है। इस पावन धरा पर अनेक धर्मवीर, दानवीर, शूरवीर, तपवीर पैदा हुए हैं और उन्होंने अपने-अपने कृत्यों से अपने कुल में चार चाँद लगाकर उसका नाम उज्ज्वल किया है। ऐसे ही कुलों में एक कुल धौलपुर में भी था। धौलपुर में जैसवाल गोत्रीय श्रेष्ठी संतलाल निवास करते थे। इनके चार पुत्र थे। चार पुत्रों में सौभाग्यचंद्रजी धर्मशास्त्रों के ज्ञाता थे। वे लोकप्रिय भी अधिक थे, जिस कारण वे धौलपुर में भाई जी के नाम से विख्यात थे। पं. सौभाग्यचंद्रजी के तीन पुत्र हुए। इनके सबसे छोटे पुत्र श्री ब्रजलाल जी सबसे अधिक प्रख्यात हुए। ब्रजलालजी ने भी दिगंबर जैन शास्त्रों का तलस्पर्शी अध्ययन किया था। ये अपने पिता के अनुरूप ही थे। ये भी धौलपुर में भाईजी के नाम से विख्यात थे। श्री ब्रजलाल का पाणिग्रहण आगरा निवासी श्रेष्ठी रामदासजी की सुंदर, सशील सुपुत्री चम्पाकुँवर के साथ हुआ था। चंपाकुँवर श्री ब्रजलाल जी के सर्वथा अनुकूल थी। दोनों की जोड़ी मनोहारिणी थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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