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________________ व्यसनमुक्त हो जीवन परमपूज्य व्याख्यानवाचस्पति श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज शिष्य ज्योतिषाचार्य ज्योतिषसम्राशिरोमणि मुनिजयप्रभविजय श्रमण.... आज के इस भौतिक चकाचौध वाले युग में बहुसंख्यक व्यसन का अर्थ कष्ट होता है। यह संस्कृतशब्द है। यह प्रवृत्तिजन्य व्यक्ति किसी न किसी व्यसन से : ग्रस्त हैं। कुछ व्यसन आज है। अर्थात्, जिस प्रवृत्ति से कष्ट होता है, उस प्रवृत्ति को व्यसन एक फैशन का रूप में ले चुके हैं। जब व्यसनग्रस्त व्यक्तियों कहा जाता है। यहाँ एक प्रश्न उत्पन्न होता है। वह यह कि यदि का ध्यान इन व्यसनों के दुष्परिणामों की ओर आकर्षित किया कोई व्यक्ति यह कहे कि उसे मदिरापान से कष्ट नहीं आनंद जाता है, तो वे अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें स्वीकार तो कर लेते हैं, मिलता है, इसलिए मदिरापान उसके लिए व्यसन नहीं है, तो क्या किन्तु व्यसन त्यागने के लिए तत्परता प्रदर्शित नहीं करते हैं। यह सत्य मान लिया जाएगा? नहीं, कदापि नहीं। कारण यह है आज की नई पीढ़ी तो प्रायः व्यसनाधीन होती जा रही है। उसे कि मदिरापान का तात्कालिक परिणाम उस व्यक्ति के लिए व्यसनों से दूर रखने के प्रयास भी निरर्थक सिद्ध होते जा रहे हैं। आनंददायक भले ही हो, किन्तु अंतिम परिणाम हर दशा में व्यसनों के भयावह दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। फिर भी कष्टप्रद ही रहने वाला है। अतः मदिरापान व्यसन है। व्यसन एक समाज व सरकार उनकी ओर से उदासीन हैं। हम यहाँ व्यसन प्रकार का विषवृक्ष है, जो मनुष्य के जीवन को शनैः-शनैः नष्ट शब्द का उपयोग कर रहे हैं, किन्तु यह व्यसन क्या है? इसको करता है। उसके परिवार की सुख-शांति को बर्बाद करता है। समझना आवश्यक है। इसे समझने के लिए व्यसन का अर्थ यहाँ एक बात और कहना उचित प्रतीत होती है। वह यह कि और उसके प्रकारों की विवेचना आवश्यक प्रतीत होती है। वही बुराई व्यक्ति को अपनी ओर शीघ्रता से आकर्षित करती है। हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं व्यक्ति उसकी ओर आकृष्ट होकर उसे अपनाने लगता है। फिर व्यसन के संबंध में किसी यशस्वी कवि ने लिखा है धीरे-धीरे वह उसमें डूब जाता है। उससे बाहर निकल पाना उसके लिए कठिन हो जाता है। वैसरे यह कहते हुए भी हम सुनते व्यसनस्य मृत्योश्च व्यसनं कष्टमुच्यते। हैं कि क्या करें आदत पड़ गई है अब छूटती ही नहीं है। किन्तु व्यसन्यधोऽधो व्रजति स्वर्यात्यव्यसनी मत:।। व्यक्ति यह भूल जाता है कि आदत भी उसने ही डाली है। यदि _तात्पर्य यह है कि मृत्यु और व्यसन इन दोनों में से व्यसन व्यक्ति दृढ संकल्प कर ले तो आदत में परिवर्तन करना कोई अधिक हानिप्रद है। क्योंकि मृत्यु एक बार ही कष्ट देती है, पर बडा कार्य नहीं है। जो अपनी आदत में परिवर्तन नहीं कर पाते व्यसनी व्यक्ति जीवन भर कष्ट पाता है और मरने के पश्चात् भी हैं. उनमें आत्मबल की कमी रहती है। जो व्यक्ति व्यसनों के वह नरक आदि में विभिन्न प्रकार के कष्टों का उपभोग करता है। दुष्परिणामों से परिचित रहते हुए भी यदि उनका परित्याग नहीं जबकि अव्यसनी जीते जी भी यहाँ पर सुख के सागर पर तैरता है करते हैं. उनका सामाजिक जीवन प्रायः नष्ट हो जाता है और और मरने के पश्चात स्वर्ग के रंगीन सुखों का उपभोग करता है। प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है। पारिवारिक जीवन संघर्षमय हो व्यसन का अर्थ - कोई भी व्यक्ति जन्मजात व्यसनी नहीं जाता है, अत: जहाँ तक हो सके व्यसनों से बचना ही चाहिए। होता। व्यसन तो एक आदत है, जो संगति में रहने पर पड़ती है। व्यसन के प्रकार - व्यसनों को संख्या की सीमा में बाँध पाना जो जैसे वातावरण और व्यक्तियों की संगति में रहेगा उसके सरल नहीं है। कारण कि प्रत्येक वह आदत जो परिवार में संघर्ष अनुरूप ही उसका जीवन, उसकी आदत बन जाएगी। किंचित् को जन्म देती है. समाज में प्रतिष्ठा को ठेस पहँचाती है. व्यसन ही कोई ऐसा व्यक्ति मिलेगा जो काजल की कोठरी में रहकर की श्रेणी में आती है। फिर भी विद्वानों ने व्यसन में भेद, प्रकार भी बेदाग निकल आए। जब व्यसन के अर्थ पर आते हैं तो बताए हैं। वैदिक ग्रंथों में अठारह प्रकार के व्यसन बताते हए andidroidniwandwimitaniwomsiwandwindowondinbiwiroad-6 ५९Horridorironioritoroorieirdmivincibridnidiadride D:\GYANMAMAKHANDS.PM5 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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