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जिस कोण से दृष्टिपात किया-नया आयाम उभरा-कोण बदला-पायाम की छवि बदली। यही तो विशेषता होती है 'बहमुखी' व्यक्तित्व की। प्रत्येक दिशा में भिन्न छवि का प्रायाम प्रक्षेपित होता है। यही नहीं कोणीय बिन्दु का घुमाव वत्तीय होता है । न कोणों की गणना हो सकती है न ही आयामों को संख्या में बांधा जा सकता है। श्रद्धेय महासतीजी 'अर्चना' का मान्य-गम्य एवं गण्य व्यक्तित्व श्री-साधना की धुरी पर स्थिर होकर इन्द्रधनुषी रंगों की छटा बिखेर रहा है, अनेकानेक आयामों का निर्माण कर रहा है। प्रतिपल की। कर्मठता उनकी चर्या है, आध्यात्मिकता एवं साधना-उनकी अर्चना है, लोक-कल्याण उनकी नीति है, सर्व का शुभ-चिन्तन उनका संस्कार है तथा प्रात्मोत्थान उनके हृदय की झंकार है। उनके जीवन से प्रणीत यह सफलता शिखर ! जैन-गगन में कितनी ऊँचाई तक उन्नत होगा? कोई नहीं जानता, किन्तु यह तो सर्वविदित है कि आगामी पीढ़ियाँ इसके मूल्यांकन की शब्द पंक्तियां रंजित करेंगी। कहीं पढ़ा था
सब की पीड़ा के साथ व्यथा, जो अपने मन की जोड़ सके। मुड़ सके जहाँ तक समय उसे, निर्दिष्ट दिशा तक मोड़ सके । युग पुरुष वही सारे समाज का, विहित धर्मगुरु होता है।
सबके मन का जो अन्धकार, अपने प्रकाश से धोता है। पूज्य महासतीजी भी एक ज्योतिर्पज हैं-जिनके जीवन का अवलोकन और व्यक्तित्व का विश्लेषण अपने आप में युग की कहानी का सृजन है। सरल हृदय, सादगीपूर्ण जीवन, जैन संस्कृति द्वारा उपदिष्ट पंच-महाव्रतों का सम्पूर्ण पालन, निष्कपट सेवाबोध, मृदु व्यवहार एवं साधना-निष्ठता प्रापकी 'व्यक्तिगत विशिष्टताएँ हैं। दोनों के लिए अनुकम्पाभाव, निराश उदासीन जीवन के लिए प्राशा-किरण, युवाओं को सदैव संरत-सक्रिय रहने का परामर्श, संघ-+-समाज+राष्ट्र की विकासशील प्रतिश्रुतियों से सुसज्जता, संस्थागत प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन तथा संगठन+सम्प+सहयोग के स्वर्णसूत्र का संचरण आपके 'सामाजिक व्यक्तित्त्व के रजत गुण है। शिष्या-समुदाय को आत्मविकास का मार्ग-दर्शन, भव्यात्मानों की शक्तियों का उत्तम विनियोजन (पारखी जौहरी की तरह), संवेगवर्धक प्रवचनों का प्रस्फुरण, मानवीय मूल्यों का निरपेक्ष स्थापन तथा अलौकिक साधनारतता आपके 'आध्यात्मिक' व्यक्तित्त्व की सफलताएँ हैं । राष्ट्रहित को सर्वोपरिता धर्मनिरपेक्षता (जैन अजैन सभी को उद्बोधन देना) योग के लिए उपदेश, सिलाई केन्द्र, वृद्ध सहायता केन्द्र, विधवा सहायता केन्द्र, अस्पताल आदि का निर्माण एवं प्रेरणा तथा निर्धनों के प्रति विशिष्ट अनुरागभाव एवं स्नेहसिंचन आपके व्यक्तित्व के 'राष्ट्रीयस्वरूप' को उजागर करते हैं। आपश्री शब्द हैं, शब्द की प्रयोजिका शिल्पी हैं, अपनी अभिव्यञ्जनाओं को गद्य-पद्य तथा साहित्य की अन्य विधानों में ढालने में सिद्धहस्त हैइसीलिए तो 'अर्चना' हैं । जैन आगम साहित्य के प्रकाशन की बागडोर को सम्हाल कर अमूल्य साहित्यिक योगदान आपश्री के 'साहित्यिक व्यक्तित्व' का साकार प्रतिबिम्ब है। यही नहीं व्यवहार की कुशलता तथा स्वभाव की परिपक्वता आपश्री के जीवन की सम्पूर्णता है।
ऐसे सर्व दिशाई क्षमतामों से समृद्ध विराट व्यक्तित्व का मन का हर कण इन शब्दों में अभिनन्दन करता है
आई घडी
चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन | ३८
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