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दैविक गुणों से युक्त साधिका
0जतनराज मेहता
जैनजगत की यशस्वी सतियों में महासतीजी श्री उमरावकंवरजी अर्चना का स्थान प्रथम कोटि की सतियों में आता है।
आपश्री का गम्भीर ज्ञान, अगाध श्रद्धा, गहन साधना, प्रभुभक्ति में तन्मयता, शान्त व सौम्य मुद्रा, एक चित्ताकर्षक व्यक्तित्व का अनूठा संगम है ।
जो भी धर्म प्रिय जिज्ञासु बन्धु प्रापश्री के सान्निध्य में आता है, विभोर हो उठता है, समर्पित हो जाता है एक दैविक व्यक्तित्व को । ___ गुणों के धाम, आत्माभिराम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र-रत्नत्रय का संगम, साधनाशील व्यक्तित्व सभी कुछ तो मिल जाता है प्रापश्री के व्यक्तित्व में ।
ध्यान के अभिनव प्रयोग, नित नतन प्रकाशमणियों का गुम्फन, अन्तराल में छिपे मणिमुक्तारूपी नवचिन्तन की कणिकाएं आपके व्यक्तित्त्व को विराट बना देती हैं ।
साथ ही वाग्देवी सरस्वती के आशीर्वाद से उत्तम शब्दरचना, आकर्षक व्याख्यानशैली, प्रोजस्वी व मृदुवाणी सुन कर श्रोता प्रात्मविभोर हो उठते हैं।
ऐसे दैविक गुणों से युक्त, प्रात्मपथ की पथिका, अध्यात्मसाधिका-शत-शत चिरायु हों।
अर्चनाभिनन्दन ] कोकिला भारतीय
विश्व के प्रांगण में कभी-कभी ऐसे व्यक्तित्व का उदय होता है जिसका जीवन अनेकों के लिए प्रेरणादायी होता है। जिनकी वाणी में धर्म और दर्शन आकार लेते हैं, जिनकी कथनी और करनी में समानता होती है एवं जिनका जीवन ज्ञान, साधना एवं कर्म की एक प्रयोगशाला होती है, ऐसे कषाय-विजेता व्यक्तित्वों की सतत प्रात्म-लक्षी जीवनसाधना एवं प्रतिपादित मूल्यों के द्वारा ही मानवता तथा नैतिकता ने, आध्यात्मिकता तथा साधना ने जीवन प्राप्त किया है।
इसी परम्परा की मणिमुक्ता की एक दिव्य कड़ी हैं-महासती श्री उमरावकंवरजी । - 'अर्चना' । जिनके दर्शनाभिनन्दन का सौभाग्य मुझे प्रापश्री के खाचरौद चातुर्मास में मिला ।
ऐसा लगा जैसे परिचय प्रथम नहीं वरन अत्यन्त पुराना है, प्रगाढ़ है। ज्यों-ज्यों सम्पर्क के | आई घड़ी अवसर बढ़े, एक बहुमुखी व्यक्तित्व की छवि प्रतिपल स्मृतिपटल पर अंकित होने लगी।
अभिनंदन की प्रथम खण्ड/३७
चरण कमल के वंदन की
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