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________________ प्रकरण इस सहजता से सम्पन्न हुना कि वर्षावास में अपनी शिष्या परिवार सहित आप वहाँ विराजीं। दिवंगत युवाचार्य श्री मधुकर मुनि श्री मिश्रीलालजी म. की प्रमुख शिष्या हैं । आपके गुणों की सौरभ काश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत के हर प्रदेश को सुवासित कर रही है। हम दम्पत्ति की शत-शत भावांजलि व नमन आपके चरणों में स्वीकृत हो । शत-शत नमन । जवाहरलाल मुणोत, अमरावती जिन सम्यक्-त्रयी की मूर्तिमान प्रतीक प्रखर-तपःपूत श्रमणी महासतीजी की महिमा की गरिमा से समस्त जैनजगत और भारत का प्राध्यात्मिक विश्व प्रकाशित है-उनकी लोककल्याणमयी दीक्षा के स्वर्णजयन्ती के पावन अवसर पर वन्दन और अभिनन्दन के अभियोजन को शत-शत नमन और अभिवादन ! ऐसी यूग संवाहक श्रमण-श्रमणी के सम्मान के क्षण स्वयं हम श्राविकाओं और श्रावकों के कर्म-क्षारण का सफल पल होता है, क्योंकि इस प्रयोजन से हम अपनी निष्ठा, आचरण और अनवरत अभ्यास से निरन्तर धर्मसाधना को सुगठित करते हैं। इसलिये, यह प्रायोजन श्रावकश्राविका संघ और उनके सीमित संसार के लिये बहुत मूल्यवान प्रेरणा और अत्यन्त उपयोगी अध्यवसाय है। शायद सतही तौर पर यह महसूस हो कि उत्तम श्रमण अथवा श्रमणी की साधना की चरम अनुभूति आत्म-कल्याण का वातायन अनावृत कर रहा है। परन्तु सचाई यही है कि ऐसे अध्यात्मजीवी सन्तों महासतियों के लिये प्रात्म-कल्याण समग्र लोक-कल्याण का पर्याय बन जाता है। इसलिये जैनधर्म एकाकी, संकीर्ण अथवा प्रात्म-केन्द्रित नहीं, यह तो समस्त जीव-जगत और उसके सिरमौर मानव के आध्यात्मिक कल्याण का सर्वोत्तम सोपान है। प्रार्थना है कि यह ग्रन्थ, केवल शोभा की वस्तु न रह कर सतत लोक-जागरण, प्रेरणा और आत्म-शुद्धि के स्वाध्याय तप का उपादान बने और अपनी प्रतिभा से चतुर्विध संघ को परिप्लावित करे ! शुभ कामनाओं के साथ आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की अर्चनार्चन /३६ Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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