SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "शाश्वत सुख की महाप्रणेता, __ महासती 'उमराव' तुम्हें। प्राणिमात्र की ज्योतिपुज, हे धीर, वीर, गम्भीर तुम्हें । तप जप संयम की सूत्रकार, हे करुणा की दीप तुम्हें। मन के, तन के हर कण से, शत-शत वन्दन शत अभिनन्दन । प्रापश्री के चारित्र जीवन के अर्द्धशताब्दी वर्ष के अवसर पर हार्दिक शुभ-कामना करती हैं कि प्रापश्री का स्वस्थ, सफल एवं सुदीर्घजीवन जैन-समुदाय एवं मानव-समुदाय को सदैव प्रेरणापुञ्ज बनकर ऊर्जाएँ प्रदान करता रहेगा। मानवता के आकाशदीप का अभिनन्दन 0 अमरचन्द मोदी (ब्यावर) भारत विविध संस्कृतियों की निर्माण भूमि है। संस्कृति यानी मानवीय चेतना के ऊर्वीकरण का दुन्दुभिनाद करने का गौरव इसी भूमि को प्राप्त है। फिर भी भारतीय संस्कृति के वैदिक भेद ने वर्ण, जाति, लिंग, वेष आदि प्रकारों की परिधि में स्वयं को परिपुष्टित करके मानव-मानव में अनेक अनचाही विषमताओं को जन्म दिया। प्रात्मोत्कर्ष के अवसरों को व्यक्तिविशेषों तक सीमित कर दिया। बौद्धपरम्परा को भी कुछ इसी तरह की मर्यादा है। उसमें भी वर्ण-जातिकृत विशेषताएँ नहीं हैं। जन्म के बजाय कर्म को प्रधानता देकर व्यक्ति-विकास के अवसर दिये हैं लेकिन पुरुष और स्त्री का भेद करके पुरुष-वर्ग तक ही उसका क्षेत्र है। लेकिन जैनधारा ने इन सबको उपेक्षणीय और हेय बताकर स्त्री-पुरुष को समान रूप से भौतिक, प्राध्यात्मिक स्वोदय करने की उद्घोषणा की। यही कारण है कि जैन धारा के इतिहासपृष्ठों में अध्यात्मसाधक स्त्रियों की श्रमणी साध्वी के रूप में गौरव गाथायें अंकित हैं । सुदूर अतीतकाल में महासती चन्दनबाला से प्रारम्भ हुई माध्वी-परम्परा प्रवहमान है। अत्यन्त प्रोजस्वी, तेजस्वी, यशस्वी, वचस्वी विदुषी साध्वियों की गाथायें हमारी मन-मंजूषाओं में सुरक्षित हैं । जिनका स्मरण कर हम हर्ष-विभोर हो जाते हैं । ऐसा ही एक पुण्यावसर आज हमें प्राप्त है और इसकी केन्द्र है अध्यात्मयोगिनी, विदुषी साध्वीरत्न उमरावकंवरजी 'अर्चना' । हम आपकी दीक्षा स्वर्ण-जयन्ती जैसे महनीय प्रसंग पर शत-शत वन्दन अभिनन्दन करते हैं। आपकी विश्रत साधना, आराधना मानवमात्र के लिए आकाशदीप की तरह पथ-प्रदर्शक, प्रभावक हो । इस भावना के साथ पुनः पुनः श्रद्धावनत हो अपने को गौरवशाली मानते हैं। आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड | ३९ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy