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रूप में आप द्वारा जो साहित्यिक सर्जन हुआ, वह आध्यात्मिक वाङमय की एक अमूल्य निधि है। आप वास्तव में हमारे श्रमण-संघ में श्रमणीरत्न के रूप में एक महान् विभूति हैं। आपके स्वभाव में जो मधुरता, सरलता और मृदुता विद्यमान है, वह आपका असाधारण गुण है। सन् १९८१ में नोखा चांदावतां में चार दिन आपके सान्निध्य में रहने का जो मुझे सौभाग्य मिला, मैं उसे कभी भूल नहीं सकती। उस छोटी-सी अवधि में मुझे आपसे बहुत कुछ सीखने का सुअवसर प्राप्त हुआ, अन्तःप्रेरणा प्राप्त हुई।।
महासतीजी की प्रतिभा सर्वतोमुखी है। वे महान लेखिका हैं और साथ ही साथ अत्यन्त प्रभावक प्रवचनकार भी। आपकी वाणी में विद्याजन्य परिष्कार और साधनागम्य पोज है, अतएव जो भी श्रवण करते हैं, मंत्रमुग्ध की ज्यों हो जाते हैं, उनका जीवन धर्मोन्मुखता के रूप में एक नया मोड़ लेता है।
आपके जीवन का क्षण-क्षण चिन्तन, मनन तथा ध्यान में व्यतीत होता है, जो श्रमण जीवन की वास्तविक शोभा है । आपके गुण एवं संयम की दिव्य ज्योति का वर्णन करना मुझ जैसी सामान्य साध्वी के लिये कदापि शक्य नहीं है। केवल यह सोचते हुए कि महान् पुरुषों के गुणगान से प्रात्मा निर्मल बनती है, मैंने अपनी यथाशक्ति अपने भाव प्रकट करने का किचित् प्रयास किया है।
परमादरणीया महासतीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. "अर्चना" की दीक्षा-स्वर्णजयन्ती के शुभ अवसर पर मैं अपनी कोटि कोटि मंगलकामनाएं व्यक्त करती हैं। महासतीजी म. सा. का जीवन दिन-प्रतिदिन साधना के प्रशस्त पथ पर उत्कर्ष, महोत्कर्ष की अोर प्रगति करता जाए, मेरी यही अन्तर्भावना है ।
मनोबल से दुविधा की बेड़ियां कट जाती हैं मनोबल की धनी : महासती श्री उमरावकंवरजी
0 साध्वी चन्द्रप्रभा
भारतीय संस्कृति संतों की संस्कृति है। इस धरा पर भले ही शासन किसी का रहा हो, पर महत्त्व सन्तों का ही रहा है। सन्त एवं महासतियों की परम्परा आज भी अक्षुण्ण है। इन महान विभूतियों की दिव्य परम्परा में पूज्या महासती श्री उमरावकुंवर जी 'अर्चना' म. सा. के जीवन का भी अपना अनूठा स्थान है। इस भारत भूमि की प्राप दिव्य सती-रत्न हैं ।
पू. महासतीजी बाल्यावस्था से ही बड़ी भाग्यशालिनी और होनहार प्रतीत होती थीं। प्राप बचपन से ही धर्म संस्कारों से अोतप्रोत थीं। यौवनवय प्राप्त होने पर माता-पिता ने आपश्री को परिणय के बन्धन में बाँध दिया। विवाह के बाद आपने पतिव्रत धर्म, शान्त स्वभाव, कार्य कुशलता और सेवाभाव से ससुराल के सारे कुटुम्ब को थोड़े ही समय में अपने अनुकूल बना लिया। कुछ समय के पश्चात् क्रूर काल ने आपके पतिदेव को ग्रस लिया। आपको सारा संसार सूना दिखाई देने लगा। कौटुम्बिक सम्बन्ध प्रापको बन्धन रूप प्रतीत होने लगे।
आई घड़ी ।
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चरण कमल के वदन की
अर्चनार्चन | २२
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