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आपने दीक्षा लेने का संकल्प किया। संयोगवश पू. महा. परमसाधिका श्री सरदारकंवरजी म. सा.का सहयोग मिला। गुरुणी सा. की अमृतमयी वाणी ने आपके जीवन में नया स्वर फूंका। आपने पारिवारिक सदस्यों से दीक्षा की अनुमति मांगी। परिजनों को आपके वैराग्यमय जीवन से तसल्ली हो गई थी कि आपमें सच्चा वैराग्य है, अत: आपको आज्ञा मिल गई । ज्ञान, दर्शन एवं चारित्ररूपी धर्म के पौधे को आपने सदैव आत्मसाधना से सींचा । जैनसमाज में आज आप एक आदर्श साध्वी रत्न कहलाती हैं। आप संयमपथ पर दिनोंदिन बढ़ते हुए जिनशासन की प्रभावना बढ़ा रहे हैं। प्रापका मनोबल अकथनीय है।
दीक्षा-स्वर्णजयन्ती के इस शुभ अवसर पर मैं सश्रद्धा सभक्ति वन्दन एवं अभिनन्दन करती हूँ
तेरे चरणों में नित नत है, वैभव के अति ऊँचे क्षितिधर । "अर्चना" सतीवर चरणों में, अर्पित श्रद्धापुष्प प्रवर ॥ "अर्चना" नाम तथा गुण "अर्चना", कलिमय पंक विजित है। "अर्चना" सती चरणों में मेरा, शत-शत वन्दन समर्पित है।
महासती "अर्चनाजी' की अद्वितीय प्रतिमा, विनयशीलता, मधुर वाणी आदि
गुणों के समक्ष भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जिओ हजारों साल
सरलहृदया शा० चं० गुरुणी सा. श्री झनकारकंवरजी म. सा. की प्रेरणा से
साध्वी आनन्दप्रभा 'साहित्यरत्न'
भारत की पावन धरती को अनेक संतों ने अपनी तपश्चर्या से सुशोभित किया है। ऐसे संत इतिहास के अभिन्न अंग हैं। भगवान महावीर स्वामी के तत्त्वदर्शन को अपने जीवन में चरितार्थ करने वाले साधु, साध्वियों की दीर्घकालीन परम्परा है। जैन सम्प्रदाय की प्रादर्श शृखला में परमविदुषी अध्यात्मयोगिनी, आदर्श त्यागी, अनुपम प्रवचनकार श्रमणी-रत्न श्रद्धेया श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' का जीवन भी विशिष्ट उपलब्धि है। आपका व्यक्तित्व चम्बक की तरह प्रभावशाली है । यही कारण है कि आपके पास पाने वाले सहज ही श्रद्धानत हो जाते हैं। आप में प्राणीमात्र के प्रति समभावी वात्सल्य की भावना है। मैं आपकी अद्वितीय प्रतिभा, विनयशीलता, सेवापरायणता, सुमधुर वाणी आदि गुणों से विशेष रूप से प्रभावित है।
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड /२३
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