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________________ कोटि कोटि मंगल कामनाएं श्रमणी चेतनप्रभा "चैत्य", बी. ए. जगत् में अनेक प्रकार की कलाएँ हैं जिनके सहारे व्यक्ति अपनी बुद्धि द्वारा अनेकानेक विशिष्ट कार्य करता है। वैसे शास्त्रों में बहत्तर कलानों का उल्लेख है। उन बहत्तर कलायों में जैसा कि निम्नांकित पद्य से प्रकट है, दो कलाएँ सबसे प्रमुख हैं, श्रेष्ठ हैं "कला बहत्तर पुरुष की, तामें दो सरदार । एक जीव की जीविका, एक जीव उद्धार ॥" सांसारिक व्यक्ति को जीवन चलाने के लिए कुछ न कुछ करना ही होता है। अपने करणीय को वह जितनी सुन्दरता से, आकर्षक रूप में कर पाता है, वह अपनी जीविका उतनी ही सुविधापूर्वक, मनोज्ञतापूर्वक चला पाने में सक्षम होता है। प्रत्येक कार्य कलापूर्ण हो सकता है। कलापूर्णता कार्य में निःसन्देह सुन्दरता उत्पन्न करती है। किन्तु केवल इस सांसारिक जीवन का निर्वाह मात्र ही तो मानव-जीवन का लक्ष्य नहीं है। अपने जीवन का निर्वाह तो पशु-पक्षी भी किसी न किसी प्रकार करते हैं। जीवन का यथार्थ लक्ष्य प्रात्मा का उद्धार है । आवागमन से, जन्म-मरण से विमुक्त होना है। धन्य हैं वे सत्पुरुष, वे सन्नारियां, जो जीवन के सही लक्ष्य का अंकन करते हैं तथा उस दिशा में अग्रसर होते हैं । परम श्रद्धे या महासतीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. एक ऐसी ही महान प्रात्मा हैं जिन्होंने अपने जीवन का सही लक्ष्य समझा । उन्होंने विक्रम संवत् १९९४ मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी को छोटी सी उम्र में अपने को साधनामय जीवन में समर्पित कर दिया । वे महान संयम-साधिका, त्यागमूर्ति महासती जी श्री सरदारकंवरजी म. की सेवा में उनकी अन्तेवासिनी के रूप में संयम की उदग्र साधना में संलग्न हो गईं। विद्याराधना और चरित्राराधना ही उनके जीवन का क्रम बन गया। परम श्रद्धास्पद, जैन शासन के महान् प्रभावक मुनिश्री हजारीमलजी म. सा., महान् स्वाध्यायी, प्रात्मसंलीन ध्यानयोगी मुनिश्री ब्रजलालजी म. सा. तथा बहुश्रुत पंडितरत्न युवाचार्यप्रवर श्री मिश्रीमलजी म. सा. "मधुकर" जैसे महापुरुषों की छत्रछाया पापको चिरकाल तक प्राप्त रही, यह आपका सौभाग्य था। इन महान् संतों एवं महासतीजी श्री सरदारकुंवरजी म. सा. की सत्प्रेरणा तथा सदुद्यम से आपके जीवन में अध्यात्म की एक अद्भुत आभा प्रस्फुटित हुई। सुयोग शिल्पी के हाथ में पाने पर जैसे एक अनगढ़ पाषाण सुन्दरतम प्रतिमा का रूप ले लेता है, वैसे ही आपका जीवन अध्यात्म के इन महान् शिल्पियों के सत्प्रयास से आध्यात्मिक सौंदर्य और सुषमा से खिल उठा । ग्राप साधना के पथ पर उत्तरोत्तर अग्रसर होती गईं। आपका जीवन अधिकाधिक उद्दीप्त होती आत्म-ज्योत्स्ना से कोहनर हीरे की ज्यों चमक उठा। पुण्यात्माओं के पुण्यमय जीवन की यह विशेषता होती है, जहाँ भी उनके चरण टिकते हैं, सफलता उनके आगे-आगे चलती है। साधना और लोक-कल्याण के पथ पर आप अथक रूप में चलती रहीं, आज भी चल रही हैं। अपने अध्ययन और अनुभतियों के प्राकट्य के । . आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खंड /२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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