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________________ जीवन की सार्थकता रत्नत्रय से है जिससे प्रतिपल नवीन ज्योति उत्कीर्थ होती है समाजरी जागती जोत 0 शा. चं. श्री झणकारकंवरजी म. सा. की सुशिष्या साध्वी जयमाला परम विदुषी महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. तो बस उमरावकुंवरजी ही है। प्रापरी होड़ कुण कर सके। आप सीधा सरल, आचरणमा निर्मला, वाणीमां मधुरता एवं साध्वी समाजमां जागती जोत हो। सबहू पहला म्हारी दीक्षा ऊपर आप घणी महरवानी कर आसोप पधारिया । उण रे बाद मा भी नरी दाण प्रापरे साथे रेवण रो काम पड्यो, म्हारी वणां रे प्रति जो ऊंची धारणा है वणी मां कदी फरक नी प्रायो अरु न पावेला। "साधु सोहिता अमृत वाणी" या भली उक्ति म. सा. श्री उमरावकुंवरजी सूं हमेशा प्रगट मिली। हर समय मुलकतो, हँसतो चेहरो, मीठी मीठी बातां री मनुहार, ध्यान-साधना में मगन और सुन्दर व सरस विचार या खास विशेषता म्हारे ध्यान में प्राई। प्रापरो व्यवहार उत्तम और वचन मधुर, ए दोनों बातां तूं पराया ने आपणो बणांवता पाप रे देर नी लागे । पाप तो बड़ा ही, स्वाध्यायी ग्रन्थकार हो, चोखा वक्ता हो, पछे किण बात री खामी। चारित्र पर्याय रा पचास वर्ष निरन्तर आध्यात्मिक उन्नति मा बीत्या या बडी हर्ष और प्रमोद री बात है। समाज अापरो अणी प्रोसर पर अभिनन्दन करे यो ठीक ही है। मुं भी हिवड़ा सं सात्विक अभिनन्दन करती थकी आशा करू के श्री श्री १००८ श्री उमरावकुंवरजी म. सा. घणा वरसां तकी जीवन संयम का पहरी बणने जैन समाज प्रवर श्रमण संघ रो मार्गदर्शन करे । आ ही म्हारी हिवडा री कामना अवर मना रा वन्दन है, अभिनन्दन है आपरां चरणां मा, याने स्वीकारो। आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की अर्चनार्चन /२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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