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________________ आलंकारिक दृष्टि से श्री उत्तराध्ययनसूत्र : एक चिन्तन / १०९ गाथा १४ – 'जायपक्खा जहा हंसा' पंख आने पर हंस उड़ जाते हैं वैसे भक्त-पान से पोषित कुशिष्य अन्यत्र चले जाते हैं। उदाहरण तथा हंसा में श्लेष [हंस और शिष्य ] | गाथा १६ – 'जारिसा मम सीसाउ, तारिसा गलिगद्दहा' जैसे गलिगर्दभ / प्रालसी निकम्मे गधे होते हैं वैसे ही ये शिष्य हैं। इसमें उदाहरण । अध्ययन २६ - सूत्र ६ विरोधाभास तथा 'माया नियाण-मिच्छायंस सल्लाणं' इसमें रूपक है । - सूत्र १३ – विमुपायच्छित य जीवे निष्कुर्याहियए ओहरियभारो व भारवहे' प्रायश्चित्त से विशुद्ध बना जीव अपने भार को हटा देने वाले भारवाहक की तरह निर्वृ सहृदय ( शान्त) हो जाता है। इसमें उपमा है। सूत्र १७ – मगं च मग्गफलं च विसोहे' (ज्ञान) को निर्मल करता है। इसमें रूपक है । और प्राचारफल (मुक्ति) की धाराधना करता है। इसमें भी रूपक है । सूत्र ६० जहा सूई समुत्ता, पडिया विन विणस्स' जिस प्रकार ससूत्र ( धागे सहित) सुई कहीं गिर जाने पर भी विनष्ट (गुम) नहीं होती है वैसे ही 'तहा जीवे ससुत, संसारे न विणसई' ससूत्र ( श्रुतसम्पन्न ) जीव संसार में विनष्ट नहीं होता है। इसमें उदाहरण है। 'समुत्ता' तथा 'विणस्सई' में यमक है। - साधक मार्ग ( सम्यक्त्व) और मार्गफल 'आयरं च आयारफलं च आराहेइ' आचार सम्पूर्ण २९ वे अध्ययन में परिसंख्या अलंकार मिलता है। अध्ययन ३० --गाथा ५-६ - 'जहा महातलायस्स, सन्निरुद्ध जलागमे । उरिसचणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे ॥ " किसी बड़े तालाब का जल, जल आने के मार्ग को रोकने से पहले के जल को उलीचने से और सूर्य के ताप से क्रमश: जैसे सूख जाता है ' एवं तु संजयस्सावि, पावकम्मनिरासवे । भवकोडीसंचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जई ॥ , उसी प्रकार संयमी के करोड़ों भवों के संचित कर्म पापकर्म के आने के मार्ग को रोकने पर तप से नष्ट हो जाते हैं । इसमें उदाहरण अलंकार है तथा साथ ही तप को सूर्य ताप की उपमा दी गई है। अतः उपमा भी है । Jain Education International अध्ययन ३२ - गाथा ६ – 'जहा य अण्डव्यभवा बलागा, अण्डं बलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहाययणं खु तव्हा, मोहं च तण्हाययणं वयंति ॥ ' जैसे अंडे से बलाका (वगुली) और वलाका से अण्डा उत्पन्न होता है वैसे ही मोह से तृष्णा और तृष्णा से मोह उत्पन्न होता है। उदाहरण, यमक पुनरुक्ति अलंकार है साथ ही भ्रांति भी है। गाथा ७ ― 'कम्मबीयं' कर्म - बीज । रूपक तथा गाथा में पुनरुक्ति, यमक है । गाया १० 'दुमं जहा साउफलं व पक्खी' जैसे स्वादु फल वाले वृक्ष को पक्षी उत्पीडित करते हैं वैसे ही वित्त' च कामा समभिहयन्ति' विषयासक्त मनुष्य को काम उत्पीडित करता है । उदाहरण तथा 'रसा' शब्द दो बार आने से यमक । For Private & Personal Use Only धम्मो दीयो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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