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________________ शुभ-कामना मुनि जीवन परम् विदुषी आर्यारत्न श्री उमरावकुंवरजी म. 'अर्चना' के बहमानार्थ दीक्षा स्वर्ण जयंती पर अभिनन्दनग्रन्थ के प्रकाशन का निश्चय जानकर महती प्रसन्नता हुई। जिनशासन की उन्नति एवं उसकी महिमाविस्तार में श्रमण समुदाय के साथ श्रमणी समुदाय का योगदान भी अतीव प्रशंसनीय एवं स्मरणीय है। प्रभ महावीर के समय में साध्वीप्रमुखा महासती श्री चन्दन बालाजी ने ३६,००० साध्वी समुदाय का नेतृत्त्व किया था। प्रात्मसाधना के साथ-साथ महासती चन्दनाजी अध्यात्म जगत् की शासक भी रही हैं। क्या महासती चन्दनाजी का यह योगदान कम स्मरणीय है ? जैनधर्म के इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जायेंगे जिनसे हमें यह अच्छी तरह ज्ञात हो जाता है कि साध्वीसमुदाय एवं श्राविकासमुदाय का जैनशासन की उन्नति में गरिमामय योगदान रहा है। महासतीजी श्री अर्चनाजी के निमित्त से श्रमणी-जगत् के सम्मान का जो स्तुत्य प्रयास किया जा रहा है वह बहुत ही प्रशंसनीय है। मैं भी अपनी ओर से यही शुभकामना अभिव्यक्त करता हूँ कि महासती श्री अर्चना जी अपने दीर्घ यशस्वी एवं गौरवमयी संयमी जीवन में जिनशासन की उन्नति करते रहें एवं मुमुक्ष जीवों को सद्बोध देती रहें। आशीर्वचन 0 पं० प्रवर श्री हीरामुनिजी म., समदड़ी महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. हमारे श्रमण संघ में चमकती हुई नक्षत्र के रूप में समुपस्थित हैं। स्वर्गीय पूज्य श्रीब्रजलालजी म., युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म. "मधुकर" का अनुशासन व मार्गदर्शन प्राप्त किया है । गुरु पाशीर्वचन प्राप्त महासतीजी ने भारत के विविध अंचलों में परिभ्रमण कर जिनशासन की गौरव-गरिमा में अभिवद्धि करने के साथ भारी अनुभव प्राप्त किया है। कहा भी है देश फिरा नहीं विदेश फिरा नहीं, भिक्षा करी नहीं भाव की । कूआ केरी मेण्डकी क्या जाने, लहर दरियाव की ॥ महासतीजी ने अपने ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप रत्नत्रय के बल से देश-विदेश समाज में अमर नाम किया है। आशा है, गुरुणी सा. के पद-चिह्नों पर चलकर उनकी शिष्याएँ भी श्रमण संघ में प्रसिद्धि प्राप्त करेंगी। यही हादिक भावना! आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की अर्चनार्चन | १२ Jan Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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