SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिनन्दन 0 श्री सुदर्शनमुनिजी म. परम श्रद्धेय विद्वद्वर्य स्वर्गीय युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी महाराज एक महिमामण्डित उच्च साधक और जैनत्व के साथ-साथ विविध मत-मतान्तरों के मर्मज्ञ विद्वान थे। उनका संयमनिष्ठ जीवन समाज के लिए आदर्श रहा है। उन्होंने समाज को अनेक प्रकार की देन दी है । जैन आगमों का आधुनिक परिवेश में सम्पादन एवं प्रकाशन उनकी अनूठी देन ही है, इसके अतिरिक्त उनका कथा-साहित्यिक अवदान भी अनुपम है, साथ ही उन्होंने विद्वान, चरित्रनिष्ठ एवं शासन-प्रभावक साधु-साध्वियां भी तैयार किये हैं। उन्हीं में से एक है परमविदुषी योगनिष्ठ महासती श्री उमरावकुंवर "अर्चना" जी महाराज जिन्होंने अपनी गौरवशाली साधना में जीवन के ५० वर्षों में समाज को विविध उपकारों से उपकृत किया है इसलिए समाज उनके प्रति कृतज्ञ होने के कारण उनके अभिनन्दन स्वरूप उनकी दीक्षा-स्वर्णजयन्ती मना रहा है। यह जानकर अतीव प्रसन्नता हई है। साध्वीजी स्वस्थ दीर्घजीवन व्यतीत करें यही मंगल मनीषा है। भाव भरा हार्दिक अभिनन्दन मुनि विनयकुमार 'भीम' श्री-वीतराग सर्वज्ञ सर्वदर्शी परम अवतार अहिंसा, सत्य, अनेकान्त के प्रर्वतक तीर्थकर प्रभु महावीर स्वामी ने चार संघों की स्थापना की। उन चार संघों में, तीर्थों में साध्वी समाज का भी प्रमुख स्थान है। चरम तीर्थंकरने श्राविका समाज की बागडोर चन्दनबाला को सौंपी थी, हमारा प्यारा भारतवर्ष नारियों के उज्ज्वल इतिहास, प्रेरणामयी तेज गाथाओं से भरा पड़ा है। नारियों की शौर्यमयी बलिदान की परम्परा हर प्रान्त में प्रेरणा का स्रोत है। नारियों की तारीफ करते हुए हमारे प्राचीन कवियों ने कहा नारी गुणों की खान है, नारियों के दिल में करुणा का सागर है। नारी से भीम जैसे योद्धा पैदा हुए । प्रसिद्ध लेखक जयशंकर प्रसाद ने लिखा 'नारी तुम श्रद्धा हो।' महासतीजी के नाम का प्रत्येक अक्षर ज्ञान और तप का इतिहास है। -र कहते हैं दिल को, इसी शब्द को उर्दू में जिगर कहते हैं, अंग्रेजी में इसी शब्द को हार्ट कहा गया है । 'अपने दिल को दर्पण के समान स्वच्छ, निर्मल, सुन्दर रखो' यह भारतीय ऋषियों, मुनियों का पावन पैग़ाम है। जैन दर्शन में महावीर ने कहा-जिसका दिल पाक है, वहीं धर्म का निवास है। कहावत है-'दिल सुन्दर सब काम सुन्दर, दिल खराब सब काम बेकार', इसलिये तो ज़िगर को पाक बनाना एक बेजोड़ कला है, हर शख्स को इस कला पर अमल करना चाहिये। आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड / १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy