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________________ 31 पत्र क एफ 155 16 ना दी क्षा र्ण अ न अर्चना र्च न आए, किन्तु राजा ने उन्हें अस्वीकार करते हुए कह दिया- "मुझे अपनी पुत्री के लिये राजकुमार नहीं अपितु त्यागी पुरुष चाहिये ।" एक दिन राजा शहर से बाहर घूमने गए तब उन्होंने एक फ़कीर को देखा, जिसके चेहरे पर साधना का उम्र तेज दिखाई दे रहा था। उम्र भी अधिक नहीं थी अतः राजा ने उससे पूछ लिया- "क्या तुम विवाह करना पसंद करोगे ? आश्चर्यपूर्वक उस मस्त फ़कीर ने राजा को देखा, पर उसकी बात को उपहास समझकर उत्तर दिया -~ "विवाह कर तो सकता हूँ, किन्तु मुझ फ़कीर को कौन अपनी कन्या प्रदान करेगा ? मेरे पास कुछ भी नहीं है ।" तृतीय खण्ड "मैं अपनी राजकुमारी तुम्हें दूंगा ।" "लेकिन मेरे पास तो राजन् ! केवल तीन पैसे हैं ।" "तुम तीन पैसों से ही कुंकुम और अगरबत्ती ले आओ, मैं कन्यादान कर दूंगा । फ़कीर दोनों चीजें ले धाया और राजा ने उसके साथ राजकुमारी का विवाह बिल्कुल सादगी से कर दिया। फ़कीर पत्नी को लेकर अपनी झोपड़ी में श्रा गया पर उसमें प्रवेश करते ही राजकुमारी की नजर झोपड़ी में एक मोर रखी हुई दो रोटियों पर पड़ी। लिया "ये रोटियां क्यों रखी है ?" उसने पूछ Jain Education International फ़कीर ने बताया -- " श्राज खाने के बाद बच गई थीं, अतः कल के लिये रख दीं ।" राजकुमारी बोली - "मैं यहाँ नहीं रह सकती।" फ़कीर ने मुस्कराते हुए कहा- "यह तो मैं पहले ही जानता था कि तुम राजघराने की होकर इस झोंपड़ी में नहीं रह सकोगी ।" "मैं तुम्हारी झौंपड़ी देखकर भागना नहीं चाहती किन्तु तुम्हारी रोटियाँ देखकर नहीं रहना चाहती। क्या तुम्हें कल का भरोसा नहीं है, जो रोटियों का संग्रह कर रखा है।" यह सुनते ही फ़कीर की मानों आँखें खुल गईं, मन ही वैभव में पली पत्नी को सराहा तथा अपनी साधु वृत्ति को उससे रोटियाँ कुत्ते को डाल दीं। इसी प्रकार महाकवि 'माघ' और उनकी पत्नी 'लक्ष्मी' उदार व दयालु दम्पती थे । उनके जीवन का एक प्रसंग है 96 For Private & Personal Use Only मन उसने अपनी राजसी तुच्छ मानकर उसी पल www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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