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________________ दहेजरूपी विषधर को निविष बनाओ! एक दिन घर में अन्न न होने के कारण लक्ष्मी अपने पति माघ का एक श्लोक लेकर महाराजा भोज के दरबार में गई। श्लोक से प्रभावित और प्रसन्न होकर राजा भोज ने माघपत्नी लक्ष्मी को एक लाख स्वर्ण-मुद्राएँ भेंट में दी। उन्हें लेकर वह अपने पति माघ के पास घर की ओर आ रही थी कि मार्ग में उसे सैकड़ों याचक महाकवि माघ की उदारता की प्रशंसा करते हुए मिले । लक्ष्मी से रहा नहीं गया अत: वह प्रेम और उदारता के साथ सभी को स्वर्णमुद्राएँ दान में देती चली गई। परिणाम यह हुआ कि घर आने तक, उसके पास एक भी मोहर नहीं बची। जब माघ को इसका पता चला तो वह अतीव प्रसन्न होकर पत्नी की सराहना करते हुए बोले-"लक्ष्मी ! तुम मेरी सच्ची सहधर्मिणी तथा साक्षात् कीर्ति-स्वरूपा पत्नी हो। मुझे तुम्हारे कार्य से असीम सन्तोष और प्रसन्नता प्राप्त हुई है। याचकों को निराश करने से अधिक पाप और कोई नहीं है तथा ऐसे पापी के जीवित रहने से क्या लाभ है ?" कहा जाता है कि अत्यन्त उदार महाकवि माघ ने अपने जीवन में कभी किसी याचक को अपने द्वार से निराश नहीं लौटाया और जब वे कुछ देने की स्थिति में नहीं रहे तो यह श्लोक कहते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिये कि: ब्रजत-ब्रजत प्राणा अथिनि व्यर्थतां गते । पश्चादपि हि गन्तव्यं क्व सार्थः पुनरीहशः? -हे प्राणो! याचक के व्यर्थ जाने पर तुम भी चले जानो, जाना तो बाद में भी पड़ेगा ही, किन्तु ऐसा साथ फिर कहाँ मिलेगा? बंधुनो ! आपके सामने मैंने एक-दो उदाहरण ही रखे हैं, जबकि प्राचीनकाल से लेकर अब तक भी ऐसी महान् नारियाँ घर-घर में प्राप्त होती थीं, आज भी हैं, आवश्यकता है उन्हें पहचानने की तथा उनके गुणों का मूल्यांकन करने की । किन्तु अफ़सोस है कि धनप्राप्ति की निकृष्ट भावना ने लोगों के विवेक और ज्ञान के नेत्रों पर दौलत की हवस-रूपी पट्टी चढ़ा दी है और इसीलिये वे केवल उसे दहेज लेकर आने वाली अबला स्त्री मानरहे हैं। अपनी शक्ति की पहचान आप करें आज पुरुष नारी को अबला तथा शक्तिहीन कहकर तिरस्कृत और अपमानित करते हैं, जबकि वह अबला नहीं सबला और पुरुष से भी अधिक महत्त्व रखती है। बल से अर्थ अगर शारीरिक बल या पशु-बल से लिया जाय तो अवश्य उसमें पुरुष की अपेक्षा वह बल कम है, किन्तु जैसा कि मानना चाहिये, बल का अर्थ नैतिक, चारित्रिक तथा आध्यात्मिक बल से लिया जाय तो निश्चय ही वह सम्पूर्ण दष्टिकोणों से पुरुष की अपेक्षा अधिक बलवान तथा क्षमताशाली है। महात्मा गांधी ने अनेक स्थानों पर कहा है: .. समाहिकामे समणे तवस्सी ___ओ श्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्वी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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