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________________ •अर्थ ना र्च न . दहेज रूपी विषधर को निर्विष बनाओ! एक 5 लाख प्रात्मबंधुनो! .. हम आए दिन सुनते हैं और अखबारों में पढ़ते हैं कि अमुक गाँव अथवा अमुक शहर में दहेज कम मिलने के कारण ससुराल वालों ने बहू को मार दिया, जला दिया या सदा के लिये उसे त्याग दिया। ऐसी घटनाओं का घटना प्रत्येक मानव, समाज और देश के लिये महान् कलंक एवं शर्मनाक स्थिति का कारण होना चाहिये, किन्तु ऐसा लगता है, जैसे लज्जा या शर्मिन्दगी मानव के हृदय से निकलकर लोभ या तृष्णा के अथाह सागर में डूब गई है। इतना ही नहीं, उस सागर में से दहेज-रूपी ऐसे विकराल दानव का आविर्भाव हुआ है, जो उन सुकोमल ललनामों को, जिनमें सीता, सावित्री, मीरा, पार्वती और मरियम जैसी महान नारियाँ छिपी हुई हैं, उन्हें निगलता चला जा रहा है। कन्या की उत्तम शिक्षा, शील तथा अनेक गुण-सम्पन्नता के बावजूद भी दहेज वाला पलड़ा ही भारी माना जाने लगा है। लगता है आज लोगों ने सूयोग्य, सुशील और सुन्दर संस्कारों से परिपूर्ण वधू को भी पशु अथवा अन्य सामान्य उपयोग में आने वाली वस्तु के सदृश समझ लिया है, जिसे विवाह के नाम पर सौदेबाजी करके लाया जाता है। हमारे दूरदर्शी पूर्वजों ने कन्यादान के पीछे जिन महान् एवं पवित्र भावनाओं का संचय किया था, वे अब पूर्णतया नष्ट होकर केवल परिपाटी बन गई है। किन्तु इतना ही होता तब भी विशेष दुःख की बात नहीं थी पर अब कन्यादान के साथ दहेजप्राप्ति की जो विभीषिका चल पड़ी है, उसने भारतीय गौरव तथा भारतीय संस्कृति को बरी तरह से कलंकित और लज्जित कर दिया है। भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान कैसा रहा है ? हमारे देश की प्राचीनतम और महती संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता नारी को आद्यशक्ति और पूज्य मानना ही रही है। इस संस्कृति ने पुकार-पुकार कर सर्वप्रथम यही कहा है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।" --जहाँ नारी पूजनीय मानी जाती हैं वहाँ देवता भी क्रीड़ा करते हैं। सर्वत्र नारी का प्रथम स्थान माना गया है, इसका प्रमाण आज भी हमें मिलता है कि लोग विद्या के लिये सरस्वती की, संपत्ति के लिये लक्ष्मी की और शक्ति की प्राप्ति के लिये दुर्गा की पूजा करते हैं। इतना ही नहीं, पशुओं में भी नारी-रूप गाय को पूजते हैं तथा उसमें तेतीस करोड़ देवताओं का समावेश मानते हैं। नारी का महत्त्व तो वे भगवान् के अवतार से भी अधिक 94 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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