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________________ दीर्घजीवन या दिव्यजीवन रहता है। शांति का स्रोत अंदर है, बाहर नहीं। आध्यात्मिक उन्नति के अभाव में विज्ञान की बाह्य उन्नति या उसका विकास वरदान न बनकर अभिशाप ही साबित हया है। भौतिक संपत्ति कितनी भी इकट्री कर ली जाय और तिजोरी को सूवर्ण तथा रत्नों से भर लिया जाय पर मनुष्य की आंतरिक तिजोरी खाली ही रहेगी। न वह शांति प्राप्त कर सकेगा और न ही परमात्म-स्वरूप की प्राप्ति । उपनिषद् में एक स्थान पर कहा गया है:"सत्य का मुख सुवर्ण के ढक्कन से ढंका हया है।" यह बात यथार्थ है, व्यक्ति धन की चकाचौंध में सत्य का दर्शन कदापि नहीं कर सकता । एक धनी व्यक्ति किन्हीं संत के पास पाया और बोला "महात्मा जी ! ईश्वर है कहाँ ? मुझे तो कहीं भी दिखाई नहीं देता।" संत ने बिना कुछ कहे एक कागज पर 'ईश्वर' शब्द लिखा और पूछा-"यह क्या है ?" "ईश्वर लिखा हा है।" व्यक्ति ने उत्तर दिया। तत्पश्चात् संत ने उस शब्द पर सोने की मोहर रखकर पुनः पूछा-"अब क्या दिखाई दे रहा हैं ?" आगन्तुक ने कहा-"सोने की मोहर ।" तब संत ने उस श्रीमंत को समझाते हुए कहा-"भाई ! सोने की मोहर के नीचे दब जाने से ईश्वर शब्द दिखाई नहीं पड़ता, ठीक इसी प्रकार मनुष्य की निगाह जब जड़ वस्तुओं पर ही रहती है तब वह ईश्वर को कैसे देख सकता है ? ईश्वर को देखने के लिये तो उसे बाह्य या जड़-जगत् से दृष्टि हटाकर अन्दर की ओर निगाहें फेरनी पड़ेंगी। परमात्मा का निवास तो आत्मा में ही है, दूसरे शब्दों में यों भी समझ सकते हो कि आत्मा ही परमात्मा है।" कहने का अभिप्राय यही है कि जड़-भौतिक वस्तुओं को इकट्ठा करने के लिये अनेक पाप करने पड़ते हैं । झूठ, बेईमानी और धोखेबाजी आदि अनेक प्रकरणीय क्रियाएँ किये बिना अथाह सम्पत्ति इकट्ठी नहीं होती और इतने पाप करते हुए भी व्यक्ति सत्य देव के अथवा ईश्वर के दर्शन करना चाहे तो वह कैसे संभव होगा ? जड़वाद सम्पूर्ण बुराइयों की जड़ है और उसके कारण आत्मा को जन्म-जन्मान्तर तक हानि उठानी पड़ती है अत: उस मार्ग पर चलना कदापि उचित नहीं है। समाहिकामे समणे तवस्सी "0" ओ श्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्वी है।" 89 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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