________________
तृतीय खण्ड
'. अ
ना
च
न
.
का
9/04.24.ॐ.
सच्चा सुख उनसे परे होता जाता है । आज जिधर नजर डालें, उधर ही इस तथ्य की पुष्टि करने वाले अधिक संख्या में देखे जा सकते हैं। मनुष्य जड़ के पीछे दीवाने के समान पड़ा हुमा हैं। इसी की सुरक्षा के लिये आज विज्ञान से विध्वंसकारी अणुबम बना लिया है पर उससे क्या होता है ? क्या वह मानव को सच्चा सुख हासिल करवा सकेगा ? कभी नहीं, जीव-जन्तुओं के समान आपस में लड़-झगड़कर लोग इहलीला समाप्त कर लेंगे अथवा चाँद तक चढ़कर भी आखिर अधोलोक में जा गिरेंगे। यही आशंका किसी कवि ने व्यक्त की है-..
विज्ञान में दिनोंदिन आगे बढ़ रहा है आदमी , देखो आज चाँद पर चढ़ रहा है आदमी। डर है जितना ऊँचा उतना नीचे गिर न जाए,
क्योंकि आदमी से आज लड़ रहा है आदमी। वास्तव में ही आज विज्ञानरूपी शैतान ने नरसंहार के लिये अनेकानेक नए-नए तरीके निकाल दिये हैं। मनुष्य के चारों ओर बिजली व गैस आदि की वस्तुओं का ऐसा जाल बिछा है कि वे भौतिक सख प्रदान करने के स्थान पर पल भर में ही व्यक्ति को बेजान कर देती हैं। भोपाल का गैस-कांड भी विज्ञान की देन का एक उदाहरण है, जिसने अल्प समय में ही असंख्य व्यक्तियों का जीवन समाप्त कर दिया और जो किसी तरह बच गए वे नेत्रहीन या अपंग होकर अपना सम्पूर्ण जीवन रोते-बिलखते रहने को बाध्य हैं, अपनी असहायता के कारण या परिवार के कई-कई सदस्यों के एक साथ ही पृथ्वी से प्रयाण कर जाने पर । मनुष्य ने आविष्कृत वस्तुओं के द्वारा जीवन में अधिक सुख प्राप्त करना चाहा है पर उन्हीं के कारण जीवन ही किस क्षण अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा यह आशंका मस्तक पर खांडे की तरह लटक रही है कि कब वह गिरे और जीवन समाप्त हो जाय ।
प्रबुद्ध विचारक समझ सकते हैं कि ऐसी स्थिति में विज्ञान को वरदान कहा जाये या अभिशाप ? मनुष्य समझता है कि वह विकास कर रहा है, यातायात की सुविधाओं से उसने संसार को सिमटा लिया है, किन्तु साथ ही उसका मन भी सिमट कर संकुचित होता जा रहा है, मानवता, सद्भाव, स्नेह तथा सहयोग प्रादि का अभाव होता चला जा रहा है । पर इस ओर शायद उसका ध्यान नहीं है। बाहर से चुस्त-दुरुस्त और स्वयं को सुखी मानते हुए भी उसके मन को शांति नहीं है तथा प्रतिसमय वह स्वयं को व्यग्र, व्यथित और उलझनों से घिरा हुआ पाता है, इसका क्या कारण है ? ।
उत्तर स्पष्ट है कि विज्ञान ने मानव की एकाङ्गी उन्नति की है, उसके द्वारा मनुष्य भौतिक सुख-सुविधाओं के साधन जुटा लेता है, दौलत इकट्ठी कर लेता है किन्तु आध्यात्मिक पक्ष की उन्नति नहीं कर पाता उलटे अवनति की ओर झुकता है। इसीलिये उसका मन अशांत
88
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org