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________________ दीर्घ जीवन या दिव्य जीवन ? आत्मबंधुप्रो ! _ इस समग्र विश्व में प्रत्येक प्राणी अधिक से अधिक जीना चाहता है, मरना पसंद नहीं करता । मनुष्य के अलावा भी जितने प्राणी हैं, भले ही वे बुद्धि व ज्ञान आदि से सर्वथा रहित हों पर मृत्यु से बचने का प्रयत्न वे भी करते हैं तथा जीवन बचाने की कोशिश में रहते हैं। मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है तथा प्रसीम बुद्धि का स्वामी भी, किन्तु विश्व की सम्पूर्ण उपलब्धियों की प्राप्ति से पूर्व सर्वप्रथम अभिलाषा और चाह उसकी यही होती है कि जीवन लम्बे समय का हो । अगर कोई भविष्यवेत्ता किसी से कह दे कि, उसे अमुक दिन मरना पड़ेगा तो वह बुरी तरह से घबरा जाएगा तथा अपना सम्पूर्ण ध्यान बचाव के उपायों को सोचने में लगा देगा । यथा-उस दिन वह अग्नि से दूर रहेगा, जल के समीप भी न जाने का प्रयत्न करेगा, चाकू, छुरी या घर में खाली बन्दूक भी टॅगी होगी तो उसे छिपा देगा, और तो और दरवाजे के बाहर कदम भी नहीं रखेगा कि कहीं एक्सीडेंट न हो जाय । कहने का अभिप्राय यही है कि वह अपनी सम्पूर्ण बुद्धि, शक्ति और ध्यान को मृत्यू से बचाव करने की अोर केन्द्रित कर देगा। उस संभावित दिन के निकलने से पहले ही डॉक्टरों की टीम को भी शायद घर पर बुलाकर अपनी जाँच पल-पल में कराता रहेगा कि कहीं चलते-चलते ही नब्ज रुक न जाए और दिल धड़कना बंद न कर दे । जाहिर है कि मनुष्य मरना नहीं चाहता, जीना चाहता है और लम्बे समय तक जीवन के बने रहने की चाह रखता है। किन्तु बुद्धिमानों का कथन है कि, प्रायु जिस समय समाप्त होती है वह घड़ी लाख प्रयत्न करने पर भी नहीं टलेगी। पं. शोभाचन्द्र 'भारिल्ल' ने सत्य कहा है कोटि-कोटि कर कोट ओट में उनकी तू छिप जाना, पद-पद पर प्रहरी नियुक्त करके पहरा बिठलाना। रक्षण हेतु सदा हो सेना सजी हुई चतुरंगी, काल बली ले जाएगा देखेंगे साथी संगी। तो ऐसी स्थिति में, जबकि मृत्यु समय पर स्वयमेव पाएगी और कोटि प्रयत्न करने पर भी टलेगी नहीं तब फिर उसके लिये चितित न होकर मनुष्य को यह चिंता करनी चाहिये कि जीवन अच्छा कैसे जिया जाय ? उसे लम्बे जीवन की अपेक्षा अच्छे जीवन के लिये प्रयत्न ९ . समाहिकामे समणे तवस्सी। जो भ्रमण समाधि की कामना करता है, वही तपस्वी समाहवयन 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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