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तृतीय खण्ड
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करना चाहिये अर्थात मरने की चिन्ता में अपनी शक्तियों का ह्रास करने की बजाय जीवन को उत्कृष्ट बनाने में लगाना चाहिये।
प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिपल यह स्मरण रखना आवश्यक है कि जीवन का महत्त्व अधिक वर्षों तक जीने में नहीं, वरन जीवन का अधिक से अधिक लाभ उठा लेने में है। आप सभी जानते हैं कि गजसकूमाल ने अपनी मात्र बारह वर्ष की जिन्दगी में ही जीवन के सर्वोत्कृष्ट साध्य, मोक्ष को प्राप्त कर लिया, जिसे अन्य मनुष्य सौ या उससे भी अधिक जीने के बाद भी नहीं पाते। भक्त ध्रव और प्रह्लाद को कोमल वय में ही भगवान के दर्शन हो गए जो कि लम्बे जीवन तक मनुष्य पूजा-पाठ करके, जप-तप और माला फेर के या घंटे-झालर बजा-बजाकर कीर्तन करके भी नहीं कर पाता । इसका कारण यही है कि भक्ति के नाम पर समस्त क्रियाएँ करते हुए भी उनका ध्यान जीवन से नहीं हट पाता तथा सम्पूर्ण मन से भगवान में केन्द्रित नहीं होता।
एक भक्त अपने गुरु के पास आकर बोला-''गुरुदेव ! आपकी बताई हुई विधियों से ही भगवान की भक्ति और पूजा करता चला रहा हूँ, किन्तु इतने वर्ष हो गए अभी तक भी मुझे भगवान् के दर्शन नहीं हुए, इसका क्या कारण है ?"
संत ने उत्तर दिया-"प्राज इसका कारण तुम्हें बताऊँगा, चलो स्नान करने चलते हैं।"
दोनों जाकर नदी में नहाने लगे और जैसे ही भक्त ने नाक दबाकर पानी में डुबकी लगाई, संत ने अपने हाथ से भक्त के सिर को दबा दिया। उसके कुछ समय तक छटपटाने के बाद उन्होंने हाथ हटाया और उसे पानी से बाहर आने दिया। शिष्य ने कुछ खिन्न भाव से प्रश्न किया
"भगवन् ! आपने ऐसा क्यों किया?" संत ने उसकी बात का उत्तर न देते हुआ पूछा
"पहले तुम यह बताओ कि जिस समय मैंने तुम्हें पानी में दबाए रखा था, उस समय तुम्हारे मन में क्या-क्या विचार पाए ?"
"यह आप क्या पूछ रहे हैं ? उस समय भला मैं क्या सोचता, केवल मन इसीलिये छटपटा रहा था कि कब पानी से निकलं, मेरा तो सारा ध्यान इसी पर केन्द्रित हो गया था।"
___ "वत्स ! तुमने सही जवाब दिया है पर आज की इस घटना और तुम्हारे उत्तर में ही आज जो प्रश्न तुमने मुझसे किया था उसका समाधान भी है।"
भक्त को मुंह बाये अवाक् खड़ा देखकर संत ने स्वयं ही कहा-“देखो ! पानी में डबे होने पर जिस प्रकार तुम्हारा मन या तुम्हारी आत्मा केवल पानी से निकलने के लिये
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