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________________ .3 च ना च न . तृतीय खण्ड ले 45 4 .25 5 छात्रों ने उनका उपहास करते हुए अपने शिक्षाचार्य से धम्मपाल की शिकायत की। प्राचार्य ने जिज्ञासा के कारण धम्मपाल को बुलाकर पुनः वही बात पूछी और धम्मपाल ने वही उत्तर दृढ़ता तथा शांतिपूर्वक दिया। प्राचार्य ने धम्मपाल के पिता की परीक्षा करनी चाही और एक दिन मृत पशुओं की हड्डियां एक थैले में रखकर ग्रामाधिपति के गाँव जा पहुँचे । उनके समक्ष बनावटी आँसू बहाते हुए बोले "भाई ! धम्मपाल इस लोक को छोड़ गया। वह मेरा बहुत ही प्यारा और होनहार छात्र था। मैं उसे पुत्रवत् प्यार करता था, इसलिये स्वयं ही उसकी अस्थियाँ आप तक पहुँचाने प्राया है। धम्मपाल के पिता ने हड्डियों की अोर दृष्टिपात ही नहीं किया। वह निश्चयात्मक स्वर से बोले "प्राचार्यप्रवर ! मेरा पुत्र नहीं मर सकता। कोई और मरा होगा। ये अस्थियां उसकी नहीं हैं। हमारे यहाँ कोई तरुण नहीं मरता।" शिक्षाचार्य ने घोर आश्चर्य से पूछा-"आप यह विश्वासपूर्वक कैसे कह सकते हैं कि आपके वंश में कोई जवान मर ही नहीं सकता?" धम्मपाल के पिता ने प्रादरपूर्वक प्राचार्य से कहा "प्राचार्यवर ! हमारे कुल के व्यक्ति वंशानुक्रम से क्रोध, हिंसा, असत्य, चोरी आदि सभी दोषों से परे रहते हैं। पुरुष अपनी पत्नी के अतिरिक्त संपूर्ण स्त्री जाति को माता, बहन मानते हैं तथा स्त्रियाँ पति के अतिरिक्त सभी को पिता व भाई के समान मानती हुई धर्म के प्रति प्रगाढ़ आस्था रखती हैं। इसलिये धर्म से रक्षित मेरा पुत्र धम्मपाल जीवित और सुखी है। ये अस्थियाँ आप निःसंदेह किसी और की लाए हैं।" प्राचार्य यह सुनकर दंग रह गए। उनकी धर्मनिष्ठता तथा अटूट आस्था देखकर नतमस्तक होते हुए अपने परीक्षार्थ आने के मकसद को प्रकट करके लौट गए। ऐसी आस्था ही धर्म-मार्ग में आनेवाली विघ्न-बाधाओं और परीषहों को निर्मूल करती हुई आत्मा को परमात्मा बना सकती है । ल !6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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