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________________ . अ जा च ज . तृतीय खण्ड ले ५० 5.5 राजा दोपहर में सपरिवार उनके दर्शनार्थ रवाना हो गया। दोनों महात्माओं ने जब अपने स्थान से कुछ ही दूर ध्वजा-पताका वाले रथ और अन्य वाहनों को प्राते देखा तो वे समझ गए कि राजा अपने दल सहित पा रहा है। महात्मामों ने सोचा-"यह तो बड़ी आफ़त हो गई। आज राजा पा रहा है और कल से नगर-निवासियों का तांता लग जाएगा । हमारा समय नष्ट होगा और भजन में बाधा पड़ेगी। इसलिये किसी तरह इस आवागमन को प्रारम्भ में ही रोक देना चाहिये।" दोनों प्रभु-भक्तों ने कुछ सलाह की और राजा को परिवार सहित पास आते देखकर एक तेवर बदलकर दूसरे से बोला "क्यों बे भिखमंगे ! तूने मेरी रोटियाँ क्यों खाई ?" "क्यों नहीं खाऊँगा? तू भी तो कल मेरी झोंपड़ी में से रोटियां चुराकर खा गया था।" दोनों महात्माओं को रोटी के लिये इस प्रकार झगड़ते हुए देखकर राजा दंग रह गया और उसके हृदय में साधुनों के प्रति घोर नफ़रत और घृणा का भाव पैदा हो गया। कुछ भी कहे-सूने बिना वह उलटे पैरों, अपने तामझाम सहित रवाना हो गया। 4 . यह देखकर दोनों भक्तों ने निश्चितता की सांस ली। वे अपनी साधना में लीन हो गए। सच्चे संत और भक्त ऐसे ही होते हैं जिन्हें संसारी लोगों की घृणा या नफ़रत की परवाह नहीं होती और प्रशंसा या प्रसिद्धि की स्वप्न में भी कामना नहीं रहती। सांसारिक व्यक्तियों की घृणा और निन्दा को भी वे अपनी साधना में सहायक बनाकर भक्तिरूपी अमृत में बदल लेते हैं। यही देखकर किसी कवि ने कहा है विष को भी अमत बनाना जानता है आदमी, पतझड़ में बहार लाना जानता है आदमी । कौनसी तदबीर है जो आदमी न कर सके, पत्थर को भगवान बनाना जानता है आदमी॥ वस्तुतः यह सब आदमी अर्थात् मानव ही कर सकता है, जिसे फरिश्ता या देवता भी नहीं कर पाता। क्योंकि मानव-योनि ही एक ऐसी योनि है, जिसका अगर लाभ उठा लिया जाय तो आत्मा परमात्म-पद को प्राप्त कर लेती है और इसके विपरीत अगर भक्ति और धर्म को प्रतिष्ठा, प्रशंसा और आडंबर के जाल में उलझा दिया जाय तो वह थोथी और भाव-शुद्धिरहित क्रियाएँ साबित होकर मनुष्य को न इहलोक का रखती हैं और नहीं परलोक का। गोस्वामी तुलसीदासजी ने सत्य कहा है 24 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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