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________________ म झे मेरा सम्बल मिला 0 मिश्रीमल तेली, कुचेरा मेरा परम सौभाग्य रहा है कि मैं पूज्य गुरुदेव स्वामीजी श्री हजारीमलजी म०, श्री ब्रजलालजी म० एवं युवाचार्य श्री मधुकरजी म० की सेवा में वर्षों तक रहा, उनके स्वर्गवास के बाद में मेरे को बहुत बड़ा सदमा लगा, एक तरह से मैं टूट ही गया था, लेकिन दयामूर्ति महासतीजी श्री अर्चनाजी ने मुझे बड़ी आत्मीयता के साथ कहा घबराने की कोई बात नहीं है जिस प्रकार गुरु म० की सेवा में रहते थे उसी प्रकार हमारे पास रहो। अब मैं महासतीजी की सेवा में हूँ । सेवा के फलस्वरूप मेरे कमर का, घुटनों का, सिर का दर्द भी बिलकुल जाता रहा । मैं हमेशा पूज्य गुरुणीजी की सेवा में रह कर ३-४ सामायिकें व चौविहार करता हूँ। मेरा जीवन इसी तरह शान्ति से बीते और आपकी कृपा बनी रहे। सोते को जगाये । श्रीमती कंचनदेवी मेहता, मद्रास मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि परम पूज्या गुरुणीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा० "अर्चना" का अभिनन्दन-ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा है। मैं अपने आपको सौभाग्यशालिनी समझती हूँ कि, महान् गुणों के भण्डार यशस्वी तपस्वी पूज्या गुरुणीजी म. सा. श्री के दर्शनों का लाभ मुझे कई बार प्राप्त हुआ। इस बीच मुझे कई अनुभव हुए, जो आप श्री से सम्बन्धित हैं। सन् १९८४ की बात है। चातुर्मास के समय मेरी तीव्र इच्छा हुई कि मैं कोई बड़ी तपस्या करूँ। लेकिन मेरे शरीर से अस्वस्थ होने के कारण कोई भी परिवारजन मुझे तपस्या करने नहीं दे रहे थे। मेरे दो बड़े पेट के आपरेशन हो चुके थे, जिससे मैं मरते-मरते बची हूँ। इस कारण सभी मेरे तपस्या करने से नाखुश थे। __ मैं भी अपनी इच्छा के कारण विवश थी। मैंने श्रद्धया गुरुणीजी म. सा. श्री का नाम स्मरण कर जैसे तैसे तेला कर लिया। मैं यह भी नहीं चाहती थी कि मेरी तपस्या के कारण घर, परिवार में किसी प्रकार का क्लेश हो अथवा कोई कलह हो, अतः मैंने तेले के दिन यह निश्चय किया कि दूसरे दिन मुझे पारणा कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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