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________________ धर्म आराधना का फल / २२३ लेना चाहिए । लेकिन उसी रोज की मध्यरात्रि में, स्वप्न में मुझे श्रद्ध ेया गुरुणीजी म० सा० श्री के दर्शन हुए, जो हँसते हुए मुझे ९ लाडू भेंट कर रहे हैं और यह कह रहे हैं, "कंचन बाई ! तुम डिगो मत और घबराओ मत। तुम तपस्या में आगे बढ़ो, मैं तुम्हें साथ दूंगी। तुम्हारे शरीर पर इस तपस्या का कोई असर पड़ने वाला नहीं है, तुम्हारी तपस्या सुखपूर्वक पूर्ण होगी ।" सहसा मैं नींद से चौंक पड़ी और यह दृढ़ निश्चय किया कि मैं कल पारणा नहीं करूँगी, मैं आगे बढूंगी । दूसरे दिन सभी परिवारजनों ने बारी-बारी से पारण करने को कहा, लेकिन मैंने सभी को दृढ़तापूर्वक कहा - मैं आगे तपस्या करूँगी, और उससे मेरे शरीर को भी कुछ बिगड़ने वाला नहीं है । मेरी दृढ़ता के सामने सभी झुक गये और मेरी ९ की तपस्या भी सानन्द सम्पन्न हुई । यह सब प्रभाव पूज्या गुरुणीजी म० सा० श्री का ही है । (ii) मेरी बड़ी पुत्री ( पिन्टु ) को बहुत ही छोटी अवस्था में सांस उठने की बीमारी हो गई थी । इस कारण मुझ बहुत चिन्ता थी । एक दिन मुझे सहसा पूज्या गुरुणीजी म० सा० श्री के मांगलिक का चमत्कार स्मरण हो आया । मैं पिन्टु को इन्दौर - ( श्रद्धया गुरुणीजी म० सा० श्री की सेवा में) ले गई और म० सा० श्री का मांगलिक सुनवाया । करीब १५ दिन में उसे सांस की बीमारी से शान्ति मिल गई । इससे उसमें ऐसी श्रद्धा जमी कि अन्य किसी बीमारी होने पर उसे कुछ दवा देने पर वह एकदम मना कर देती है और दृढ़ता से कहती है "मैं गुरुणीजी म० सा० श्री की कृपा से ही ठीक होऊँगी ।" इस प्रकार श्रापश्री की महिमा का क्या वर्णन किया जाय ? प्रापश्री दया के सागर हैं तथा सरलता, सहिष्णुता एवं करुणा की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं । मैं अपने परिवार की तरफ से आपकी दीर्घायु होने के साथ स्वस्थ रहने की मंगल कामना करती हूँ । जब त्याग प्रत्याख्यान पूर्वक धर्मसाधना ने पारिवारिक संकट टाल दिया. धर्म आराधना का फल D कोमल जैन, अजमेर मैंने वात्सल्य वारिधि, काश्मीर-प्रचारिका श्रद्धया गुरुणीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा० 'अर्चना' का प्रत्यक्ष प्रभाव देखा है । जब १९८२ में लाखन कोटड़ी महावीर भवन में चातुर्मास था, तो हम पतिपत्नी ने अपनी व्यथा सुनाई । व्यथा यह थी कि जो मेरी कपड़े की दूकान थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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