________________
"द्वितीय खण्ड | २२० मुझे तपस्या करने का बहुत शौक था और इच्छा भी यही रहती थी कि मैं लम्बी-लम्बी तपस्या करूं । लेकिन उपवास, बेले के दिन ही स्वास्थ्य बिगड़ जाता था और मुझे तीसरे दिन नहीं चाहते हुए भी पारणा करना ही पड़ता था। इस बार जब हम म० सा० श्री की सेवा से पुन: मद्रास लौट रहे थे, तब मैंने मन में विचार किया कि म० सा० श्री मुझे ऐसी मांगलिक फरमावें और शक्ति प्रदान करें कि मैं ११ की तपस्या निर्विघ्न पूर्ण कर सकूँ । म० सा० श्री ने मांगलिक फरमायी और हम मद्रास लौट आये।
चौमासी चवदस को मैंने म० सा० श्री का ध्यान करके उपवास किया, दूसरे दिन बेला, इस प्रकार क्रमशः ११ की तपस्या कर ली।
सभी परिवारजन आश्चर्य करने लगे कि कभी तेला न करने वाले ने ११ कैसे कर लिये ? लेकिन जब मैंने म० सा० श्री के मांगलिक का प्रभाव बताया तो सभी सदस्य प्रसन्नता से फूले नहीं समाये ।।
मेरे पतिदेव भी आपश्री से बहुत प्रभावित हैं। आपश्री का शुभ सान्निध्य पाकर, सदुपदेश सुनकर उनकी प्रकृति में दिन-रात का अन्तर आ गया है । प्रतिवर्ष चाहे कहीं भी क्यों न हों, वे नियमित रूप से म० सा० श्री के दर्शन करते हैं।
विरासत में मिली श्रद्धा
0 दुलीचन्द चोरडिया, मद्रास
परम प्रसन्नता का विषय है कि मुझे पूज्य गुरुणीजी श्री मालवज्योति श्री अर्चनाजी म० की सेवा एवं दर्शनों का लाभ मिलता रहता है, और उनके जीवन सम्बन्धी अनेक विषयों की जानकारी है, उन सबको बता पाना सम्भव नहीं है लेकिन एक आश्चर्यकारी बात मुझे बार-बार याद आती है, मेरा पौत्र अनिलकुमार जिसको म० श्री धन्ना सेठ कह कर पुकारते हैं वह बहुत बार स्वप्न में भी म० श्री का नाम लेकर बोलता रहता है और सुबह उठता है तब कहता है कि आज मुझे मिठाई नहीं खाना, कभी कहता फल नहीं खाना । कभी कुछ तो कभी कुछ छोड़ता रहता है और कहता है कि श्री अर्चनाजी म० ने मुझे नियम दिलवाये हैं।
मुझे पूर्ण सन्तोष है कि हमारे गाँव में दीक्षित पूज्य गुरुणी म० का प्रभाव हमारे पर तो है ही लेकिन हमारे बच्चों पर भी यथावत है।
समादर के साथ मेरी हृदय की मंगल कामना है कि पूज्य म० श्री दीर्घजीवी होकर जन जागृति का सन्देश देते रहें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org