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तप का तेज निखरा /२१९
जच गयी और मैंने कहे अनुसार शुद्ध मन से बोलवा को। पाठकगण ! आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ज्योंही मैंने बोलवा की, उसी समय फोन द्वारा मालूम हुआ कि यह केस निरस्त कर दिया गया है । मामला सहज ही निपट गया। मुझे पूर्ण विश्वास हो गया था कि यह सब चमत्कार म० सा० श्री के नाम का ही है और मैंने उसी क्षण बैठकर गुरुणीजी म. सा० की माला फेरी और उसी दिन शाम की गाडी से मैं उज्जैन के लिये रवाना हो गया। दूसरे दिन मैं उज्जैन पहुँचा । म० सा० श्री के दर्शन किये और मेरे साथ घटित सारी घटना से म० सा० श्री को अवगत कराया, मांगलिक सुनी और मैं पुन: मद्रास लौट आया।
आज भी मुझे श्रद्ध या गुरुणीजी श्री अर्चनाजी म. सा. पर असीम श्रद्धा है जिसे मैं शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर सकता हूँ। श्रद्धा के फलस्वरूप में प्रति गुरुवार को अखण्ड मौन रखता हूँ क्योंकि म० सा० श्री भी गुरुवार को ही मौन रखते हैं।
मेरे छोटे भाई सुभाष को भी म. सा. श्री के प्रति दृढ़ श्रद्धा है। वह तो कहता है “ मैं जिस दिन म० सा० श्री की माला फेरकर दुकान जाता हूँ तो उस दिन बहुत अच्छी कमाई होती है और कभी किसी दिन कुछ कार्यवश या अन्य कारणों से माला नहीं फेरता हूँ तो उस दिन तो खाली बैठा-बैठा ही थक जाता हूँ।"
__इस प्रकार श्रद्धया गुरुणीजी श्री अर्चनाजी म. सा. के प्रति एक दो की नहीं वरन् सम्पूर्ण परिवार के सदस्यों की अनन्य आस्था है, मैं अपने परिवार की तरफ से शासनदेव से यही प्रार्थना करता हूँ कि आप दीर्घायु होकर जिन-शासन की सेवा करते रहें। साथ ही हमारे परिवार पर आपका आशीर्वाद सदैव बना रहे।
तप का तेज निखरा
। निर्मलादेवी झामड
परम पूज्या गुरुणीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' को निकटता से देखने का सुअवसर मुझे मेरी बहिन हेमलता (जो वर्तमान में आपश्री की ही सुशिष्या साध्वी हेमप्रभा है) की दीक्षा महोत्सव पर प्राप्त हुआ था। मैं उसी समय से आपसे बहुत प्रभावित थी।
___ सन् १९८५ का चातुर्मास आपश्री का उज्जैन था । आप काफी अस्वस्थ होते हुए भी मनोबल की दृढ़ता से इन्दौर से उज्जैन पधारे। विहारयात्रा में साथ रहने का मुझे यह सुन्दर अवसर प्राप्त हुआ था। आषाढ सुद तीज का म० सा० श्री का नगर में मंगल प्रवेश था । उस विशाल जुलूस में भाग लेने का भी सौभाग्य प्राप्त हो गया था।
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