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________________ लगता था जैसे शरीर से चमड़ी उतर रही है....कष्ट धर्माराधना से दूर हो गया. रूठी नींद लौट आई । मोहनदेवी छाजेड़, खाचरौद संघ के सौभाग्य से सन् १९८६ में जब खाचरौद में महासती श्री उमरावकुंवरजी म० सा० के चातुर्मास का हमें लाभ मिला तो खुशी की सीमा न रही। यद्यपि मेरे ससुराल वाले मूर्तिपूजक हैं लेकिन आपके दर्शन कर हमें ऐसा लगा जैसे हम भगवान् महावीर की दिव्यविभूति के निकट आ गये हैं। ___ मैं गत चार वर्षों से कई व्याधियों से परेशान थी, मुझे लगता था मेरे शरीर में लोहे के छोटे-छोटे टुकड़े मांस को चीरते हुए घूम रहे हैं। नसें तार की तरह खिचती थीं । कानों में भयानक आवाजें आती रहती थीं। जब मैं पूजा करने मन्दिर जाती तो मेरी अद्भुत स्थिति हो जाती । सारे कपड़े शरीर से चिपक जाते, घर पाकर उतारती तो लगता शरीर की चमड़ी उतर रही है। हर समय भयाक्रांत रहती। नींद जैसे आँखों से रूठ गयी थी। मैंने सारी स्थिति जाकर म. सा. को बतायी। आपने मुझे मंगलपाठ सुनाया और इष्टदेव का जाप करने को कहा। मैंने आपकी प्राज्ञा का पालन किया । उस दिन मुझे तीन वर्ष बाद सुख की नींद आयी। मैं म० सा० के बताये अनुसार नियमित रूप से नवकार मन्त्र का जाप करती हूँ। मैं म० सा० श्री के प्रति सादर वन्दन करते हुए उनके दीर्घजीवन की मंगलकामना करती हूँ। "सन्त हृदय नवनीत समाना कहा कविन पर कहइ न जाना निज परिताप द्रव नवनीता पर दुख द्रवै सन्त सुपुनीता॥" धर्मामृत का पान किया श्रीमती सूरज लोढ़ा, नागौर मेरा यह सौभाग्य है कि नियति ने मुझे पूजनीया गुरुणीजी श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० के सान्निध्य में मुझे बहुत समय व्यतीत करने का अवसर प्रदान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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