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________________ धर्मामृत का पान किया /२१७ ENA किया । आपके श्री चरणों में निवास करते हुए मुझे अनेक दिव्य एवं चामत्कारिक अनुभूतियाँ हुईं, जिनमें से कुछेक का उल्लेख करना मैं आवश्यक समझती हूँ। म. सा. के सं० २००१ के चातुर्मास के प्रेरक दिन थे। मैं नियमित रूप से व्याख्यान सुनती थी । एक दिन म० सा० से बड़ी विनम्रता से कहा कि व्याख्यान सुनने के अतिरिक्त दया भी पाला करो तथा कुछ ज्ञान-ध्यान में भी रुचि लो। उस दिन के बाद मेरी रुचि इस दिशा में धीरे-धीरे बढ़ती गयी। श्रीमती सिंघणजी का हमारे परिवार से वैमनस्य था। अतः जब मैंने दीक्षा अंगीकार करने की भावना प्रस्तुत की तो उन्होंने इसका बहुत विरोध किया और सिंहनी की तरह दहाड़ते हुए कहा कि महाराज को भी देख लूंगी और तुम्हें भी । यह कहते हुए वह स्थान से चली गयीं। दूसरे दिन मैं स्थानक गयी तो श्री माधवप्रसादजी शास्त्री म. सा. को अध्ययन करा रहे थे। लगभग चार बजे अचानक उड़द, राई और ऐसी ही अन्य वस्तुएँ पर्याप्त मात्रा में म० सा० के ऊपर गिरी और सारे चौक में फैल गयीं। इतने में मेरी काकीजी रोते हुए आए और कहने लगे कि आपने सिंघणजी को क्यों रुष्ट कर दिया? मैं अभी श्रीचन्द अम्बाणी के घर से पापड़ बेल कर पा रही हैं। उनसे सिंघणजी ने कहा है यदि तीन दिन में श्री उमरावकुंवरजी की लाश न निकले तो मेरा नाम सिंघण नहीं है। पूजनीया गुरुणी श्री सरदारकुंवरजी म. सा० दूसरी मंजिल पर थे। उनकी आवाज बहुत जोर से आई । श्री उमरावकुंवरजी म. सा. का कौन क्या बिगाड़ सकता है ? हम लोग यह सुनकर पाषाण प्रतिमाओं की तरह स्थिर हो गये । कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है ? महासती श्री चम्पाकुंबरजी म. सा. का कभी कभी महासतीजी श्री सरदारकुंवरजी म. सा. के शरीर में प्रवेश हो जाता था। तब आधे घण्टे के लिए भूकम्प आने की सी स्थिति हो जाती थी। इस घटना के दूसरे दिन श्रीमती सिंघणजी का गोद लिया हुआ पुत्र कीमती गहनों की पेटिका लेकर भाग गया और सख्त बीमार हो गया। ऐसा लगा जो खाई वह गुरुणीजी सा. के लिए खोद रही थीं उसमें स्वयं ही गिर पड़ी। आश्चर्य तो तब हुआ इतनी कटुता उगलने के बाद भी गुरुणीजी सा. श्रीमती सिंघण के घर अगले दिन ही मांगलिक सुनाने एवं धोवन पानी लेने पधारे। इसीलिए तो कहा गया है 'सन्त हृदय नवनीत समाना।' इस घटना से मेरी म. सा. के प्रति श्रद्धा और भी बढ़ गयी। सं. २००२ का चातुर्मास डेह नामक ग्राम में हुआ। मैं चार महीने आपकी सेवा में रहकर आत्मिक सुख पाती रही। मिगसर सदी 3 को पजनीया गरुणी श्री सरदारकुंवरजी म. सा. को संथारा पाया और वह इस लौकिक संसार को छोड़कर चली गयीं। इस घटना से महासती श्री अर्चनाजी को इतना आघात लगा कि वह उन्हें एक पल के लिए भी न भुला पाईं । अभी आपकी आयु लगभग २२ वर्ष की ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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