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प्रेतबाधा से मुक्ति / २०७ मेरे साथ प्रेत-बाधा लगी हुई थी। नाना प्रकार के कष्ट भोगे, जिनको गिना पाना संभव नहीं है । हर समय शरीर टूटना, सिर भारी रहना और मुंह के दाँत भी सब निकलवाने पड़े, जिससे खाना भी सुख से नहीं खा सकती हूँ। प्रायः शरीर में प्रेत का प्रभाव रहता था, परिणामस्वरूप कहीं पर जाना-पाना भी नहीं हो सकता था। किसी भी प्रकार का इलाज करवाने में भी कमी नहीं रखी गई किन्तु लाभ की बजाय हानि ही उठानी पड़ी।
मेरे प्रबल पुण्य के उदय से इस वर्ष पूज्य गुरुणीजी श्री उमरावकुंवरजी म० सा० "अर्चना" का हमारे चौपाटी के स्वाध्याय भवन में पधारना हुआ, उस समय मेरे शरीर में आने वाली प्रेतात्मा ने कहा- "मुझे गुरुणीजी के दर्शन करायो । मैं महाराज श्री की सेवा में पहुंची और वह तत्काल प्रा गई। खूब देर तक महाराज श्री के साथ चर्चा हुई, पूर्व भव के मेरे साथ बैर की बात बताई। सब सुनने के बाद पूज्य गुरुणीजी म. सा० ने उसे समझाया और उससे वचन लेकर विदा किया। मेरे ऊपर जो गुरुणीजी म० ने उपकार किया है, वह मैं और मेरे पारिवारिक-जन जिन्दगी भर नहीं भूलेंगे । ऐसी परोपकारी आत्माओं का इनके नहीं चाहने पर भी श्रद्धालु इनका अभिनन्दन करते हैं। मेरा भी परिवार के साथ वन्दन और अभिनन्दन है।
[२] 0 ठाकुर मदनसिंह, भालखा (राजस्थान) मैं प्रारंभ से वैष्णव धर्मावलम्बी था। मेरी जैनधर्म एवं जैनदर्शन के प्रति अटूट श्रद्धा उत्पन्न होने का कारण मेरा बड़ा पुत्र रणवीरसिंह बना । घटना कुछ इस प्रकार बनी
मेरा पुत्र रणवीरसिंह जो जोधपुर पढ़ाई सम्पन्न करके सर्विस के लिए बम्बई गया हुआ था, वहाँ इसे अच्छी पोस्ट भी मिल गई, किन्तु, पापकर्म का उदय समझिए । बम्बई से पुन: भालखा ग्राम में पाया, हम सभी उसकी प्रतीक्षा में ही थे और प्रसन्नता भी। लेकिन देखते ही देखते हमारी प्रसन्नता भयंकर चिन्ता में बदल गई। क्योंकि आते ही उसने पक्के मकान को हाथों से एक घण्टे में तोड़ गिराया ।
उसके ये हालात देखकर हम ही क्या, पूरे गांव वाले हैरान-परेशान रह गए। फिर क्या ! बड़े से बड़े डाक्टरों से इलाज करवाया, इलाज में हजारों रुपये खर्च कर दिए. लेकिन हालत बिगडती गई। फिर मन्त्रवादियों के द्वार खटखटाये. देवीदेवताओं की मनौती की, सब व्यर्थ ।
दिन-रात कोट के ऊपर घूमना, ट्रेन से तेज दौड़ना आदि तथा मनों दूध पी जाना, घर में बनाया हुआ सभी भोजन अकेले ही खा जाना। किसी मन्त्रवादी से
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