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________________ प्रेरणास्रोत : पूज्या बादीसा० म० सा० / २०५ मंत्र से एवं वीतराग के स्मरण से अचिन्तनीय लाभ होता है। कई बार तो लोग । रोते एवं बिलखते हुए पाते हैं और परम संतुष्ट होकर हँसते हए चले जाते हैं। मेरे और मेरे परिवार के प्रति पूज्य गुरुणीजी म. सा. श्री की असीम कृपा रही है। हमारे परिवार को हमेशा नैतिकता, प्रामाणिकता एवं अध्यात्म जीवन जीने का सद्बोध प्रापश्री से मिलता रहता है। यही कारण है कि हमारे बच्चे विदेशों में रहते हुए भी सात्त्विक प्रवृत्ति को ग्रहण किये हुए हैं। कई ज्ञानी-पुरुषों से सुना है, जिस घर में सन्त का जन्म हुआ हो, उस घर की कई पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है। म० सा० श्री के प्रति शुभ-भावना, और दीर्घआयु की मंगल कामना करते हुए चरणों में वन्दन करता हूँ और मैं जन्म-जन्मान्तर प्रापश्री के उपकारों का कृत प्रेरणास्रोत : पूज्या दादीसा0 म0 सा0 D घोसालाल बंब, बैंकॉक जीवन एक संग्राम-स्थली है । इसमें सैनिक को कभी जय तो कभी पराजय मिलती ही है । लेकिन आत्म-विश्वासी और साहसी उन दोनों के बीच अपने आप को धैर्य के साथ सुस्थिर रखते हुए भी अपने जीवन को ज्योतिर्मान बनाता है। वह कभी हताश, उदास एवं निराश नहीं होता है। सच्चे अर्थों में यही जीवन का कलाकार होता है। ऐसा ही जीवन जी रहे हैं-मेरे संसार पक्ष में दादीसा. पूज्या गुरुणीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. "अर्चना" । स्वयं तो जी रहे हैं, किन्तु मुझे भी समयसमय पर उत्साहित एवं प्रेरित करते रहते हैं । मैंने अपने जीवन में अनेक बार संघर्षों का सामना किया है । कई बार आर्थिक संकट से भी गुजरा हूँ। लेकिन पूज्य म० सा० श्री का सद्बोध मिलते रहने से मैं आज परम प्रसन्न एवं सम्पन्न हूँ। मैं भारत में रहूँ, चाहे बाहर विदेशों में, आपके द्वारा बताया हुआ (नित्य नियम) नियमित रूप से करता हूँ। अनेकों बार मैंने ऐसे अकथनीय चमत्कार देखे हैं जिससे मेरी श्रद्धा धर्म के प्रति दिन-प्रतिदिन सुदृढ होती जा रही है । यह सारा श्रेय परमपूज्या गुरुणीजी म० सा० श्री को ही जाता है। आपकी संयमयात्रा के अर्ध-शताब्दी के स्वर्ण अवसर पर प्रात्मा की अनन्त अास्था के साथ चरण-वन्दन एवं अभिवन्दन । Jain Education International For Private & Personal Use Only wantinelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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