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द्वितीय खण्ड | २०४ था। किन्तु साथ में कई लोगों के दिल में आपकी संयम-साधना के प्रति सन्देह भी था।
पर आज आपको जब देखते हैं तो श्रद्धा से मन अभिभूत हो उठता है । मेरी अनेकों बार योग तथा साधना के विषय पर चर्चा होती रहती है। गूढ से गूढ योग के विषय को भी आप सरल ढंग से समझा देते हैं। दीक्षा के पश्चात् आपके नोखा में दो चातुर्मास हए। मैंने अपने परिवार के साथ आपकी सेवा का लाभ लिया। आसपास के गाँव जैसे गागूडा, दधवाडा, औलादन, हरसोलाव, संखवास आदि के ठाकुर ठकरानियों पर भी आपका अमिट प्रभाव है और वे जब भी समय मिलता है, पूज्य महासतीजी म. सा० की सेवा में पहुँच जाते हैं । आपके बताये हुये योगमार्ग पर बढते हुए प्रात्मानन्द की प्राप्ति का पूर्ण प्रयास करते हैं।
मेरे गुरुदेव श्री गुलाबदासजी म. सा. जो मारवाड़ के अजैन राजवाड़ों और ठिकानों के राजगुरु थे, वे भी बहुत प्रभावित रहे। वर्तमान में उनके शिष्य श्री पांचारामजी, श्यामजी आदि संत आपकी प्रेरणा से जैन-पद्धति से अपनी साधना करते हैं।
आपके प्रति मैं जितना आभार व्यक्त करूं कम ही है। मैं अपनी तथा अपने ग्रामवासियों की ओर से आपके दीर्घजीवन की मंगलकामना करती हूँ। आप सदेव भगवत प्रेमियों को भक्ति का रहस्य समझाते हुए सन्मागं पर बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करते रहें, ऐसी मेरी हृदय की असीम श्रद्धा के साथ नम्र प्रार्थना है।
कुल उद्धारक : गुरुणीजी
बुद्धसिंह बंब, दादिया
मेरा हृदय हर्ष की उत्ताल तरंगों से तरंगित हो रहा है। क्योंकि मेरे संसार पक्ष के भुवासा काश्मीर-प्रचारिका गुरुणी श्री अर्चनाजी म० की ५०वीं दीक्षा-स्वर्णजयन्ती पर अभिनन्दनग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा है।
वास्तव में अभिनन्दन-वन्दन-अर्चन-उन्हों महान् आत्मानों का होता है, जिनका जीवन सदाचरण में ढला हो। ऐसा ही जीवन पूज्य गुरुणीजी श्री अर्चनाजी म० सा० श्री का है । मैं समय-समय पर सेवा एवं दर्शनों का लाभ लेता रहता हूँ। मुझे देख-देखकर बहुत आश्चर्य होता है कि कोई दिन खाली जाता होगा, जिस दिन कोई दुखी एवं चिन्ताग्रस्त व्यक्ति प्रापश्री का मंगलपाठ सुनने को एवं दर्शन करने को नहीं आता है । उन लोगों को आपके द्वारा बताये हुए नमोकार
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