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________________ साधना के श्रेष्ठ स्रोत : श्री अर्चनाजी | २०३ की गहराई में जा उतरीं । संसार के पांच पवित्र ग्रन्थों में समा जाना कोई साधारण बात नहीं। इसके पूर्व मैंने कभी किसी नारी को धाराप्रवाह बोलते हुए न सुना था न देखा था। ___मैं सोचने लगा-सरस्वती किसी जाति विशेष की नहीं, अपितु अखिल विश्व की, मानव जाति की है। सरस्वती किसी भाषा विशेष में बंधी हई नहीं हैं। वह तो हर भाषा समझती हैं । उसकी आराधना किसी भी भाषा में की जाए, वह सबकी सुनती हैं, वह सबको यथायोग्य ज्ञान प्रदान करती हैं । उसको पुकारने की शर्त एक ही है-दुनिया को किसी भी भाषा के साथ हृदय की भाषा का मिश्रण अावश्यक है। उस दिन अर्चनाजी से मेरी अन्तिम भेंट थी। क्योंकि उनका चातुर्मास पूर्ण हो रहा था। उनके इन्दौर की ओर प्रस्थित होने की पूर्व तैयारियाँ विगत कुछ दिनों से हो रही थीं। मैं हृदय से अर्चनाजी की अर्चना करने लगा था और मैंने सोचा भी था कि उन्हें "अलविदा" कहने के लिये नगर के बाहर तक उनके पीछेपीछे जाऊँगा, उनके पद-पंकज में श्रद्धावनत हो जाऊँगा। उन्हें अश्रुपूरित नेत्रों से विदा करूँगा। किन्तु विधाता को यह स्वीकार नहीं था। उनके गमन के अवसर पर मैं एक साहित्यिक आयोजन में भाग लेने पहले ही दूर जा चुका था। (शायद बीना) परन्तु कल्पना के पंखों पर मैं पावन-शीतल सलिला शिप्रा की त्रिवेणी तक उनके साथ था। साधना के श्रेष्ठ स्रोत : श्री अर्चनाजी ० राजमाता, नोखा (चांदावतां) मेरे हृदय में सीमातीत खशी है कि हमारे गाँव में दीक्षित परम पूज्य महासती जी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. "अर्चना" का श्रद्धालु भक्तों द्वारा वन्दन-अभिनन्दनग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है। जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी, क्योंकि जिस समय आपकी दीक्षा हुई आप बिल्कुल पढ़े-लिखे नहीं थे। शरीर की सुन्दरता एवं चंचलता के कारण मन में संशय था कि “यह बाई इस असिधारा व्रत को कैसे निभा सकेगी" मेरे बड़े सुपुत्र ठाकुर फतेहसिंह ने भी आशंका व्यक्त की थी कि इतनी छोटी आयु में तथा परिवार वालों का प्रबल विरोध होते हुए भी कैसे अपने विचारों पर दृढ़ है । जबकि संयम के स्वरूप का तो अभी तक पता ही नहीं है। जिस समय आपकी भागवती दीक्षा हमारे गाँव में सम्पन्न हुई, उस समय हजारों लोगों में अपार उत्साह था । पांच, छ: गाँवों के ठाकुरों ने भी शिकार न करने का संकल्प किया Jain Education International For Private & Personal Use Only M jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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