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________________ द्वितीय खण्ड | २०२ अंग्रेजी भाषा की मर्मज्ञ ज्ञानी-ध्यानी हैं । सरल-तरल-मधुरिम स्वरों की कवियित्री, अदम्य साहसी, अपार आत्मविश्वासी, दृढ निश्चयी तथा सहज प्रकृति की तेजस्विनी, तपस्विनी विदुषी साध्वी हैं। मेरे मन में नींद से बोझल कवि को जैसे किसी ने चुटकी भर ली हो । उनकी निद्रा भंग हो गई, वह अंगड़ाई लेकर जाग उठा । मैं कलम उठा कर काग़ज़ पर झुक गया और उमरावकुंवर "अर्चना" की प्रशंसा में एक कविता का सृजन करने लगा। उनके नाम के हर अक्षर से प्रारम्भ होकर एक पंक्ति काग़ज पर उतरती चली गई उर उल्कित, उल्लासित करता उद्बोधन, उच्चार । मरुथल में मधुवन मुसकाता, बरसे मेघ-मलार ।। राउर रसना, रसवन्ती, रसवादी-रसल-रसार । वचस्कारिणी, वीतरागिनी, विकसित विमल विचार ।। कुंदन सम, कुलवन्ती, कोमल, कादम्बरी समान । वनिता, वत्सला, वानप्रस्थिनी, विनयशील, विद्वान ।। रत्न दीपिका, रत्न मञ्जरी, रिद्धि-सिद्धि-रविजात । आपके आशिष से लाये खर्शीद अजेय प्रभात ।। भोर की प्रथम किरण के धरती पर उतरने से पूर्व ही मैंने उसे कार्ड पेपर पर संवार-सजा लिया। लगभग १० बजे श्रीमालजी के निवासस्थल पर इस उद्देश्य से कविता लेकर जा पहुँचा कि उनके निर्देशानुसार अर्चनाजी को समर्पित कर सकूँ । परन्तु उनकी अनुपस्थिति में वह कविता उनके परिवार को दे पाया। फिर तीसरे दिन मुझ पर अप्रत्यक्ष रूप से एक बड़ा भारी जुल्म हुआआदरणीय श्रीमालजी ने स्वयं अकेले जाकर, श्रद्धालुओं के समक्ष प्रवचन के अवसर पर बड़ी तन्मयतापूर्वक वाचन कर उक्त कविता अर्चनाजी को भेंट कर दी। पता नहीं-मेरी मनोभावनाओं ने क्या प्रभाव डाला कि अर्चनाजी का सम्पूर्ण वात्सल्य, स्नेह मुझ पर न्यौछावर हो गया। फिर बार-बार उनका सन्देश मिलने लगा। मैं भी व्यस्तता को तज कर अनेक बार उनसे मिला। हम निकट से निकटतम होते गये । सप्ताह भर बाद ही श्रीमालजी पुनः मुझे उनके दर्शनार्थ ले गये ।....प्रवचन हो रहा था। मेरे आगमन पर अर्चनाजी को अपार प्रसन्नता हुई और वह प्रवचन को अर्द्ध विराम देते हुए बीच में ही बोल उठी-बड़ी खुशी है कि खुर्शीदजी भी आ गये हैं। जहाँ तक मुझे याद आ रहा है शायद उस दिन का विषय था—“मानव और मानवता" । अर्चनाजी धारा-प्रवाह बोल रही थीं। मेरी ओर निहारते हुए उन्होंने कुरान पाक की आयत का हवाला दिया, हज़रत मोहम्मद सा० के उपदेश सुनाए । फिर एन्जिल का अंश उद्ध त किया। ज़बूर-तौरीत और गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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