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________________ 'अर्चना' की अर्चना | १९७ आज दिनांक १५-५-८७ को महासतीजी तथा उनके सतीपरिवार, शिष्यापरिवार ने विहार प्रारम्भ किया है। स्टेशन रोड स्थित उपयुक्त स्थान पर आप विराजमान हैं। मेरे साथ हमारी जाति के गणेशीलालजी कपूर पाए हैं। वे अस्वस्थ हैं । महासतीजी के दर्शन करने के लिए अत्यन्त उत्सुक थे। उन्हें महासतीजी के दर्शनलाभ हुए हैं। साथ में उनके दो पुत्र भी हैं। महाराज साहब से मांगलिक सुनकर जा रहे हैं । मैंने उनसे पूछा, आपको महाराज साहब के दर्शन करके कैसा अनुभव हुआ । उनकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं है। वे बहुत ही प्रसन्न होकर घर जा रहे हैं । उनके हृदय में अपूर्व विश्वास जागा है। प्रसन्नता की लहरों में डूब कर जा रहे है । ऐसा क्यों? इस प्रश्न का उत्तर यही है कि परम आदरणीया, परमपूज्या महासतीजी उमरावकंवरजी ने अपने जीवन को तप, साधना, संयम एवं ध्यान में व्यतीत किया है, जिसका अपना असाधारण प्रभाव है । ऐसे गुरुजनों के प्रति मैं नत मस्तक हूं। उनके चरणों में यह हृदय लगा रहे, एक बार पुनः महासतीजी के चरणों में नत-मस्तक होते हुए यही ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ। तपस्विनी साध्वी केवल जैन समाज की ही धरोहर नहीं हैं, जैनेतर भी उनके प्रभाव की उजली चादर ओढ़ जीवन की विषमताओं से मैत्री कर लेते हैं. वह मानवमात्र की परमनिधि हैं. 'अर्चना' की अर्चना O खुर्शीद 'अजेय', अमरपुरा (उज्जैन) "अापका नाराज़ होना उचित है दादा ! मैं वचन का पालन नहीं कर सका।" दैनिक ब्रिगेडियर के प्रधान सम्पादक श्रद्धय श्री रामचन्द्रजी श्रीमाल से आँखें चुराते हुए मैंने उत्तर दिया-इसीलिये मैं आप से नज़रें मिलाकर बात नहीं कर सकता। "मैंने वहाँ आपकी बहुत प्रतीक्षा की थी।" श्रीमालजी ने एक गहरी दृष्टि मुझ पर डाली। "दादा, पापका आदेश सर अाँखों पर!'' मैंने लजाते हुए स्पष्ट किया-'आपके आदेश की मैंने कभी अवहेलना नहीं की, किन्तु एक विशेष स्थान पर, विशेष जनसमुदाय में, विशेष विभूतियों के मध्य यों अनायास ही अकेले पहुँचने में बड़ा संकोच होता है। मैं ठीक समय पर पहुँचने के लिये अन्तिम क्षणों तक यह निर्णय नहीं ले सका कि मैं अकेला वहाँ कैसे जाऊँ ।' ___"आप अजीब बात करते हैं !" वह मुस्कराते हुए बोले- वहाँ आपको अवश्य पाना था। Jain Education International For Private & Personal Use Only w weinelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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