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________________ Jain Education International द्वितीय खण्ड / १९२ से कहा कि यदि उनके पक्षकार को दुकान रिक्त करने के लिये एक वर्ष का समय दे दिया जावे तो वे उपर्युक्त दोनों प्रकरण निरस्त कराने को तत्पर हैं । इस पर श्री सांधीजी ने मुझसे पूछा, मैंने तुरन्त हाँ कह दी । परिणाम में मेरे कुटुम्बियों के उपरोक्त दोनों प्रकरण अप्रत्याशित रूप से अविलम्ब समाप्त हो गये । श्रद्धा की तर्क पर विजय हुई और मेरी श्रद्धा प्रगाढ़ से प्रगाढ़तर होती गई । ६. मैं लाला अमरनाथजी खत्री के एक प्रारबीट्र ेशन केस में अहमदाबाद जाता था । केस अमरनाथ काशीराम - वि - एन. डी. डी. बी. के मध्य था । मुझे दिन के १० बजे से २ बजे तक और फिर ३ बजे से ५ बजे तक उस केस में एक दिन अहमदाबाद में लगातार तर्क करना पड़ा । तर्क के अन्त में में पूर्णरूप से थक गया और इतना था कि गर्दन उँची करना भी मेरे लिये कठिन हो गया । इतनी भयंकर थकावट देख मैं अपने रूम में आया, जहाँ में ठहरा था और बिस्तर पर लेट गया । पर चैन नहीं मिला। फिर बैठा हुआ, मैंने नवकार मंत्र गुना, उवसग्गहरं का पाठ पूरा दोहराया व साथ ही बापजी का स्मरण किया और फिर लेट गया । लगभग आधा घण्टे में मुझे चैन मिल गया, थकावट दूर हो गई, फिर मैंने खाना भी खा लिया और फिर सो गया। मुझे नींद भी आ गई । सुबह उठा, ख्याल आया कि कहीं कोई हृदय से सम्बन्धित व्याधि मुझे नहीं हो, यह ख्याल आने पर मैंने अपने पक्षकार को भेजकर वहाँ के एक प्रसिद्ध कार्डियोलाजिस्ट को बुलवाया । डा. महाशय ने मेरी क्लिनिकल टेस्ट की, कार्डियोग्राम लिया और इसके बाद मुझे प्राश्वस्त किया कि मुझे जुकाम अतिरिक्त कुछ नहीं है, फिर भी मैं दिन भर विश्राम करता रहा। शाम को साबरमती एक्सप्रेस से रिजर्वेशन करवा कर उज्जैन के लिये रवाना हो गया । प्रातः ६ बजे उज्जैन पहुँचा । नित्यकर्म से निवृत्त हो में महावीर भवन, उज्जैन पहुँचा, जहाँ महासती श्री अपनी अन्य साध्वियों के साथ चातुर्मासार्थ विराजी हुई थीं। जैसे ही मैं बापजी के सम्मुख पहुँचा तो बापजी ने पूछा “अब तुम्हारी तबीयत कैसी है" मुझे यह सुन महद् आश्चर्य हुआ कि बापजी को यह सब कैसे मालूम हुआ । फिर मैंने सारा घटनाक्रम बतलाया व निवेदन किया कि सब बापजी की कृपा है । किन्तु बापजी का उत्तर था कि जो मेरी अपनी श्रद्धा अपने इष्ट के प्रति अर्थात् नवकार मंत्र के प्रति है, उसीके फलस्वरूप पुण्योदय है । बापजी ने कहा मैं तो कुछ नहीं हूँ । ७. एक अन्य प्रसंग है, ग्राम बावड़ी का, जो जोधपुर व भोपालगढ़ के मध्य है । मेरे एक मित्र हैं श्री नेमीचन्दजी बम्ब जो अभी विक्रय कर विभाग में उपायुक्त के पद पर इन्दौर में पदासीन हैं। उनके रिश्तेदार श्री बी० एल० जैन हैं, जो अभी षष्ठम अपर जिला न्यायाधीश इन्दौर के पद पर पदस्थ हैं । श्री नेमीचन्दजी बम्ब की पत्नी, पुत्री व एक पुत्र तथा श्री बी० एल० जैन के पुत्र एवं उनकी माता माउण्ट आबू से आबू स्टेशन तक टैक्सी में आ रहे थे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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