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________________ चमत्कार की मूर्ति महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' | १९३ उनकी टैक्सी से राजस्थान राज्य परिवहन की एक बस टकराई, भयंकर दुर्घटना हुई, श्री बम के पुत्र का दुर्घटना के फलस्वरूप निधन हुप्रा और बाकी के गंभीर व साधारण चोटें आईं । टेक्सी का चालक भी दुर्घटना में मृत हमा । मोटर व्हेईकल एक्ट के अधीन कम्पेनसेशन के पांच क्लेम जे चले । उनमें न्यायाधिकरण के अवार्ड हुए और पांचों अवार्डों की पाँच अपीलें राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर में चलीं। पेशी संभवतया २०-८-८५ को थी। पेशी के एक दिन पूर्व मैंने, श्री नेमिचन्दजी बम्ब व श्री बी० एल० जैन ने जोधपुर में चातुर्मासार्थ विराजित तपस्वीराज श्री चम्पालालजी महाराज के दर्शन किये, दूसरे दिन अर्थात् दिनांक २०-८-८५ को जोधपुर उच्च न्यायालय में पांचों अपीलों में तर्क किये, पांचों अपोलें हमारे हित में निर्णीत हुईं केवल एक अपील में कुछ कम्पेनसेशन की राशि कम हुई। दिनांक २०-८-८५ की संध्या को हमने यह तय किया कि भोपालगढ़ में विराजित प्राचार्य श्री हस्तिमलजी महाराज के दर्शन के हेतु सुबह जाया जावे। तलाश करने पर पता चला कि भोपालगढ़ के लिये घण्टे-घण्टे के अन्तराल से बसें मिलती हैं, और इसलिये टेक्सी एंगेज करके दर्शनार्थ जाने का कोई औचित्य नहीं। हम दिनांक २१-८-८५ को प्रातः ७ बजे बस से भोपालगढ़ के लिये रवाना हुवे, १० बजे पहुँचे। प्राचार्यदेव के दर्शन किये, मांगलिक सुनी और तत्काल वापस लौटने के लिये बस स्टेण्ड के लिये रवाना होने लगे। वहाँ के श्री संघ के उपस्थित व्यक्तियों ने हमें भोजन करने के लिए बड़ा आग्रह किया किन्तु हमें तो वापस जोधपुर पहुँचने को जल्दी थी, हम बस स्टेण्ड पर आ गये किन्तु लम्बी प्रतीक्षा के बाद भी कोई बस हमें जोधपुर के लिये बस स्टेण्ड पर नहीं मिली। दो घण्टे बाद हमें बावड़ी होते हुए जोधपुर के लिये एक बस मिली, जिसे बावड़ी में रुक जाना था और बावड़ी के बाद दूसरे किसी कन्वेयन्स की व्यवस्था अथवा बस की व्यवस्था का प्रश्न हमारे सामने था। उस बस से हम बावड़ी पहुँच गये । वहीं एक होटल में मैं और मेरे दोनों साथी चाय पी रहे थे, चाय पीते-पीते मुझे मेरे एक अधिवक्ता साथी का कथन स्मरण आया। उन्होंने एक बार कहा था कि वे पुटपूर्ति सत्य साई बाबा के दर्शनार्थ गये थे। लौटने में उन्हें सही मार्ग नहीं मिला और कोई कन्वेयन्स भी नहीं मिला। थोड़ी प्रतीक्षा के बाद उन्होंने बाबा का स्मरण किया था और उन्हें तत्काल कन्वेयन्स मिल गया था। यह बात मैंने अपने साथियों से कही और साथ ही यह भी कहा कि मैं यदि मेरे महाराजश्री को स्मरण करू तो क्या मुझे कन्वेयन्स नहीं मिलेगा, बस इतना बोलने की देर थी कि हमारे सामने एक मेटाडोर आकर खड़ी हो गई । मेटाडोर में दो महाशय बैठे थे। मेटाडोर रुकी थी। मैंने अपने साथी श्री नेमिचन्दजी से कहा कि इनसे पूछो, क्या ये अपने को जोधपुर ले चलेंगे, तो उन्होंने प्रसन्न होकर के श्री नेमिचन्दजी को उत्तर दिया कि आप सब सहर्ष हमारे साथ चल सकते हैं । हमारे हर्ष की सीमा नहीं थी और बापजी की कृपा के लिये हम अत्यन्त आभारी थे। मैं और मेरे साथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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