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चमत्कार की मूर्ति श्री उमरावकुवरजी 'अर्चना' | १९१
थे। एक प्रकरण २३४:८३ विविध अपील नरेन्द्रकुमार-वि-जयाबाई आदि था व एक प्रकरण २६१:८३ विविध दीवानी नरेन्द्रकुमार-वि-जयाबाई आदि थे । इन प्रकरणों में जब मेरे वरिष्ठ अधिवक्ता श्री शंभुदयालजी सांघी को जानकारी मिली तो मेरे कुटुम्बियों का हित होने के कारण उन्होंने मुझे पक्ष-समर्थन नहीं करने और स्वयं मेरी अोर से पक्ष-समर्थन करने की तत्परता बताई, प्रकरण में दिनांक २३-११-८३ लगी थी। २२-११-८३ को मैं श्री सांधीजी के पास प्रकरण की तैयारी कराने के हेतु गया । तैयारी के मध्य श्री सांधीजी ने यह कहा कि नरेन्द्रकुमार ने एक विलेख-विशेष छिपाया है, उसे प्रस्तुत नहीं किया है । उसको प्रस्तुत कराने के लिये आवेदन-पत्र देना उचित होगा। मैंने सुझाव दिया कि आवेदन-पत्र देने से प्रकरण में विलम्ब होगा और वैसे भी अपना प्रकरण सबल है, तत्पश्चात् श्री सांघीजी ने मुझे प्रातः आठ बजे दिनांक २३-११-८३ को, जिस दिन सुनवाई होना थी, मिलने को कहा । मैं दिनांक २३-११-८३ को सुबह ७.३० बजे ही उज्जैन से इन्दौर पहुँच गया। जब मैंने सर सेठ हुकुमचन्दजी के स्टेच्यू के पास पार्क की ओर घड़ी देखी तो ७.३० बजे थे । मुझे ख्याल आया कि सांधी सा. ने तो आठ बजे बुलाया है, आध घण्टे पहले उनके पास बैठने में उन्हें असुविधा होगी, तत्काल ध्यान आया कि बापजी महावीर भवन इन्दौर में विराजे हुये हैं, आध घण्टे में उनके दर्शन करके पाऊँ। इतना विचार आते ही मैं महाराज श्री के दर्शनार्थ महावीरभवन इन्दौर पहुँच गया। पहुँचने पर दूसरी मंजिल में महासती श्री सुप्रभाजी के दर्शन हुये । मैंने उनसे मांगलिक सुनाने का निवेदन किया और साथ ही बापजी के बारे में भी पूछा, तो सुप्रभाजी महाराजश्री ने यह बताया कि बापजी अभी ध्यान में हैं, लगभग १० मिनिट में उनका ध्यान पूरा हो जावेगा, मैं उनसे ही मांगलिक सुनें और तब तक के लिये प्रतीक्षा करूं । मैं खड़ा रहा । लगभग १०-१५ मिनिट के बाद बापजी ऊपर से पधारे । मैंने वन्दना की व मांगलिक सुनाने का निवेदन किया, तो बापजी ने श्री भद्रबाहु स्वामी द्वारा रचित "उवसग्गहरं पासं" का पाठ सुनाया और आशीर्वादी मुद्रा में हाथ खड़ा कर दिया। मैंने मंत्रमुग्ध हो पूरा छंद सुना, मेरे लिये यह पहला मौका था इस छंद को इस तरह सुनने का। मेरे मन में भाव जागृत हुआ कि आज सुने जाने वाले दोनों प्रकरण अपने हित में आज ही निर्णीत हो जावेंगे । किन्तु तर्क मेरे मन में यह भी था कि श्री सांघीजी आवेदन पत्र देंगे, विरोधीपक्ष को उत्तर देने के लिये समय लेने का अधिकार है और वे समय निश्चित माँगेंगे और ऐसी स्थिति में तर्क यह कहता था कि आज कुछ नहीं होगा, तारीख बढ़ेगी, किन्तु मन में प्रबल रूप से यह बैठ चुका था कि आज प्रकरण निर्णीत होंगे और पक्ष में होंगे । मेरे मन में जब तक प्रकरणों की सुनवाई का अवसर नहीं पाया, तब तक श्रद्धा व तर्क दोनों में द्वन्द्व चलता रहा । अन्त में जब उच्च न्यायालय में सुनवाई का क्रम आने ही वाला था कि पाँच मिनिट पूर्व श्री नरेन्द्रकुमार के अधिवक्ता श्री बाघमारेजी ने श्री सांधीजी
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